________________ पच्चक्खाणाऽभिग्गहविसया जे के ममित्थ अवराहा / जाया अइक्कमाइहिं सहसाकाराऽणभोगा वा // 204 // आणाभंगाईहि व आउट्टि-पमाय-दप्पओ वा वि / रागेण व दोसेण व तिविहं तिविहेण आलोए // 205 // जे ताव संभरिज्जा अइयारा ते तहेव आलोए। जे पुण न संभरिज्जा आहेणं ते समालोए . // 206 // जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। ते हं आलोएउं उवट्ठिओ सव्वभावेणं / // 207 // छउमत्थो मूढमणो कित्तियमित्तं तु संभरइ जीवो। जं च न सुमरामि अहं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स // 208 // अरहंतसक्खियं सिद्ध-साहु-देव-ऽप्पसक्खियं तह य।। सीमंधर-जुगमंधरसामीणं चेव सक्खीयं // 209 // जं संभरामि सम्मं जं च न सुमरे पडिक्कमे तमिह / जं च न पडिक्कमामी मिच्छा मे दुक्कडं तस्स . // 210 // एवं पि हु वियडतो विसुद्धभावपरिणामसंजुत्तो / आराहओ उ भणिओ गारव-मायाहिं परिमुक्को // 211 // कयपावो वि मणुस्सो आलोइय निदिउं गुरुसगासे / होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरो व्व भारवहो // 212 // लज्जाए गारवेण य बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं / जे न कर्हिति गुरूणं न हु ते आराहगा भणिया // 213 // गारवपंकनिबुड्डा अइयारं जे परस्स न कहिति / दसण-नाण-चरिते ससल्लमरणं हवइ तेसिं // 214 // न वि तं सत्थं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणई वेयालो / जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमाइओ कुद्धो // 215 // 18