________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // मणवयणह संवाओ तुहं, जइ जिय ! धम्मि करेसि। ता मह मणि वद्धावणउं, अज्जइ जणु रंजेसि एवं झायंतस्स उ पइदियह जस्स वोलए जम्मो। . जिणवयणसवणरत्तो धन्नाण सिरोमणी सो वि . वायावित्थरु मत करहु, मा वठ्ठत्तरु देहु। जीविय जम्मण गुरुतणउ, लहु लहु लाहउ लेहु जं बालत्तुतकुंपली जोवणु विहसिउ फुल्लु। जाइ मिलाणी वुड्डपणु कइ जिय ! विसइहिं भुल्लु ? को को न गणेइ मए समणे अन्ने य संखयं काउं। मूढो न गणेइ पुणो अप्पाणं तत्थ पविसंतं अवियारो बालत्तं होइ वियारो य जुव्वणं पुरिसे / जो उ विवेयपवासो सो वुड्डत्तं अहन्नाणं गाहं पढइ वियड्डो पुच्छिज्जंतो न याणई अत्थं / कह दुद्धं कह दहियं कह महियं कंजियं होई ! दुद्धं होइ कुमारी दहियं उम्मत्त जुव्वणा नारी।। मज्झत्था पुण महियं वुड्डा पुण कंजिय होइ . कह दुद्धं कह दहियं कह महियं कंजियंति रागंधा। हं पुण भणामि महिला सव्वाओ कंजियं चेव जम्मि दिणे इय बुद्धी महिलासुं तुज्झ जीव ! किर होही। तम्मि दिणे जाणिज्जसु मोक्खाभिमुहो अहं जाओ एयाण कए पायं पावं पाविति पाणिणो भुवणे / तह सल्लं पिव तम्हा उद्धर एयासु इय बुद्धिं . विज्जुज्झुलुक्का मंनिहह, एक्कह जम्म हरेसि / चिंतहि किं पि न अप्पहिउ, बहु पच्छा झूरेसि 200 // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //