________________ अह जइ जंपंति सो उ मिच्छ त्ति...........। दव्वल्लिंगी भणिउ जाणसु तत्थावि पडिवयणं / // 277 // निद्धंधसपरिणामो हवेज्ज जइ कोइ सव्वहा विगुणो / तस्स फलं तस्सेव य इयराणं तत्थ का चिंता // 278 // जमणंतसो य पत्तं एयं जइसावएहि संसारे। . चउदहपुव्वधरा वि हु अणंतकायम्मि निवसंति . // 279 // किंचहिगारवसाउ धम्माणुट्ठाणवित्ति सत्थेसु / वाहिपडिक्कियतुल्ला दोसगुणेहि य समणुनेया // 280 // एवं जइ नो तो परिभणेज्ज कोई इमं पि पडिवयणं / काऊण य पाणिवहं चेईहरकारयस्सावि // 281 // सव्वारंभपयट्टस्स पुत्तमित्ताइकज्जनिरयस्स / इय जं जायइ बोहो तं नृणं मोहविफुरियं // 282 // सव्वाणं सुत्ताणं जं अविरोहेण होइ वक्खाणं / तं कुणसु सया जेणं जायइ नो अंतरायं ति . // 283 // इय दढ-कलिकाल-वसु-ल्लसंतनाणामयाण साहूणं / एयाण नत्थि चरणं सव्वाणं केइ जंपंति // 284 // न कहिं पि जे दीसइ संपुन्नं लक्खणं चरित्तस्स। एवं पि नेय जुज्जइ धम्मत्थीणं जओ भणियं // 285 // अइयारबहुलयाए संपइ काले न विज्जइ चरित्तं / तं न जओ सावेक्खाए एत्थ समाही विणिद्दिट्ठो // 286 // किं बहुणा जीव तुमं पुव्वायरणासु रज्जसु / सया वि मा अहुणायरणासु अ सिद्धते जेणिमं भणियं // 287 // जो भणइ नत्थि धम्मो नय सामाइयं न चेव य वयाई / सो सव्वसंघबज्झो कायव्वो होइ संघेण // 288 // 24