________________ // 265 // // 266 // // 267 // // 268 // // 269 // // 270 // केइ सकज्जाविक्खा निरविक्खा अन्नअंतरायस्स / अनहठियं पि सुत्तं समईए अन्नहा काउं वारेन्ति मुद्धसावय-जणे उदिते असुद्धमन्त्राई / काऊणं पाणिवह इच्चाइ उलवेऊणं वक्खाणाओ विसेसो नज्जइ सव्वाणमेत्थ सुत्ताणं / अविरोहा समयन्नू भणंति एयस्सिमो अत्थो बेइंदियाइपाणे हणिऊणं एत्थ देइ जो दाणं / परसमये तस्सेयं चंदणइंगालुदाहरणं अह कह नज्जइ एयं, भन्नइ, सुत्तस्स जायइ विरोहो / को णु विरोहो सुण भो ! भयवइवयणं इमं जम्हा सजियमणेसणीयं वा समणे वा माहणे दितस्स। किं कज्जइ, भो गोयम ! बहु निज्जरमप्पबंधो उ खवगरिसिखीरीनाएणं भणसि अह गुणिजणे भवे एयं / गुणवंतमगुणवंतं जाणइ नणु केवली सम्मं . अहरुत्तरवासावास कज्जट्ठियसाहुजुयलनाएणं / / इयराणं पुण निच्छयववहारनएहिं ववहरणं निच्छयनएण हीणे वि सुद्धभावाउ निज्जराभागी / भणिओ पुव्विं ववहारओ वि.लिंगपमाणाउ किंचेत्थ केवली वि हु ववहारनयं पमाणयंतो उ / वंदइ इयरमनायं भुंजइ य तहा अहाकम्म सिरिधम्मदासगणिणा वि वारियं अन्नलिंगीणं दाणं / सड्ढाणं भत्तीए दाणं विणयं च वज्जेइ नियलिंगीणं कारियमेयं अह तं अवत्थपडियाणं / नणु जो दोसो भीसो जइ खलु अन्नया वि भवे . 23 // 271 // // 272 // // 273 / / // 274 // // 275 // // 276 //