________________ // 207 // संथरणम्मि असुद्धं दोण्हं वि गिव्हिंतदितयाण हियं / आउरदिटुंतेण तं चेव हियं असंथरणे // 205 // संविग्गभावियाणं लोद्धयदिट्ठन्तभावियाणं च / मोत्तूण खित्तकाले भावं च कहंति सुद्धंछं // 206 // बिंति जइ केइ तिविहं तिविहेणं पच्चक्खाणभंगो। तम्मयमोसारिज्जइ इमाए गाहाए अवियप्पं सव्वत्थ संजमं संजमाउ अप्पाणमेव रक्खिज्जा। मुच्चइ अइवायाओ पुणो वि सोही न या विरई // 208 // जे उ जियसंसए वि हु चडंति न घडंति गहियसुत्तत्था / बीयपए धन च्चिय ते मुणिणो सव्वगुणनिहिणो // 209 // तम्हा मेवं देससु संससु परमत्थजाणए पुरिसे / जेणं जायइ तुज्झ वि समत्थ-परमत्थ-विनाणं // 210 // पासत्थाइसमीवे तवो विहाणाइ जं कयं तं तु / निंदाविति य केई कसायवसकलुसियप्पाणो . // 211 // तं न जम्हा ववहारओ उ लट्ठाओ जायए लढें। निच्छयओ पुण नेवं ववहारम्मी जओ भणियं // 212 // निच्छयओ पुण अप्पे वि जस्स वत्थुम्मि जायए भावो। तत्तो सो निज्जरओ जिणगोयमसीहआहरणं // 213 // लट्ठाणुट्ठाणं सुंदरेण भावेण चिट्ठियं जंतु। निन्दार्वितयंतं नृणं ताण रोसस्स दुललियं // 214 // उववासपोसहाई नेव को वि भावं विणा इह करेइ / . ता नो विहलं सहलं ताण समीवे वि ठियमेयं // 215 // अह विहलं तो ते कत्थ सावया कुणंतु धम्मत्थी। पुव्वुत्तजुत्तिओ जं ते वि हु जायंति पासत्था // 216 // 258