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________________ // 112 // // 113 // // 114 // // 115 // // 116 // // 117 // किंच जईण वि परिणमिआण दिज्जंति छेयसुत्तत्था / अइपरिणयाण परिणमियाण न उणामदिटुंता / अविहियउवहाणाणं नाणइयारेण तह असज्झाए / सज्झायं कुणंताणं ववहारे भणियमेवंति उम्मायं व लब्भेज्जा रोगायकं व पाउणे दीहं। केवलिपन्नताउ धम्माउ वा वि भंसेज्जा जह स्ना पडिसिद्धे दितो गिण्हंत उ य रयणे उ / पावइ दंडमिहोग्गं तह जिणरनाउ नाणुमए छेयसुयत्थे रयणोवमे उ वामोहा पढंति पाढिति / . पावंति महाघोरं भवदंडं लंघियजिणाणा तम्हा मा जीव तुमं सड्डाणं देसु छेयसुत्तत्थे / जं पि य कहेसि किंची तं पि य इयबुद्धिए कहसु अविकोविदेहिं तरलियमइणो मा धम्मबाहिरा इंतु / एए भव्वा दंसेमि तेण पंडिवक्खवयणाई. जइ पुण तुमं पि एमेय कहसि सड्डाणं दुव्वियड्डाणं / ता तुज्झ वि भवदंडो निरत्थओ एरिसो होही अन्ने उ अहम्माणी निययाभिप्पायउज्जयविहारी / नियसिस्सखंधचडिया अडंति बहुगामनगरेसु तत्थ वि तुमं विभावसु अहहो अन्नाणविलसियं एयं / जं जंघाबलहीणाइविहरणं वारियं बहुहा ववहार-पंचकप्पाइएसु गंथेसु सुत्तकेवलिणा। . अइवित्थरेण भणियं पज्जन्ते तत्थिमा गाहा जो गाउयं समत्थो सूरादाराब्भ भिक्खवेलाउ। . विहरउ एसो सपरक्कमाउ नो विहरितेण // 118 // // 119 // // 120 // // 121 // // 122 // // 123 // 250
SR No.004464
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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