________________ // 156 // // 157 // // 158 // // 159 // . // 160 // / / 161 // खामित्तु सयणवग्गं नियदव्वं वविय नवसु खित्तेसु / अणुसासिय पुत्ताई सम्माणिय पुरजणं सयलं / संथारयपव्वज्जं संपडिवज्जित्तु अणसणाभिमुहो।। साहु व्व तिहि थुईहि सगग्गरो जिणवरे वंदे जइ पुण सयणनिसेहाइकारणा चरणमोहउदया वा। पवसियपुत्ताईणं संदेसं वा कहिउकामो संथारगपव्वज्जं न यं पडिवज्जेइ मरणकाले वि। तो अणसणं कुणंतो देसजई वा अविरओ वा जिणपडिमाणं सतरसभेयं पूर्य करित्तु सत्तीए। . उड्ढतणू वित्ताणं अट्ठसएणं थुणेऊणं वामं जाणुं अंचिय दाहिणजाणुं निहित्तु धरणियले। तिक्खुत्तो मुद्धाणं. फासिय धरणीए तो भाले दसनहमंजलिमारोविऊण सक्कथएण जिणनाहे / वंदइ 'नमोऽत्थुप णं जा संपत्ताणं' ति अंतेण . अह सल्लुद्धरणत्थं खवगो काऊण वंदणं विहिणा। आलोयणं पउंजइ गुरूण संविग्गगीयाणं अग्गीओ न वियाणइ सोहिं चरणस्स देइ ऊणऽहियं / तो अप्पाणं आलोयगं च पाडेइ संसारे तम्हा उक्कोसेणं खित्तम्मि उ सत्त जोयणसयाई / / काले बारस वरिसा गीयत्थगवेसणं कुज्जा आलोयणापरिणओ सम्मं संपट्ठिओ गुरुसयासे / जइ अंतरालि कालं करिज्ज आराहओ तह वि दव्वाईसु सुभेसुं उक्कुडुगो पंजली तदुवउत्तो। आलोयणदोसजढो चउकनं वियडणं दावे // 162 // . // 163 // // 164 // // 165 // // 16 गा / . // 166 / / // 167 // . 14