________________ ताहे संठविय गणं विहिणा, एमेव गणनिसग्गं च / काऊण, सूरिखवगो आराहणमारुहे सम्म // 144 // गीयत्थाण गुरूणं पासे चिइवंदणाइदारेहिं / अणसणविहिं पउंजइ खवगो संवेगभरियंगो // 145 // भीमं अणोरपारं भवजलहिं दुत्तरं कलेऊणं / गुरुपायजुयं नमिउं कयंजली विनवे खवगो // 146 // आराहणापवहणं रुहिउं निज्जामएहिं पुज्जेहिं / भयवं ! भवनवमहं दुरुत्तरं तरिउमिच्छामि // 147 // कारुनामयजलही वायगवसभा भणंति खवगमुणिं / निविग्धमुत्तमटुं साहेहि लहुं महाभाग ! // 148 // धन्नो सि तुमं सुंदर ! एरिसओ जस्स निच्छओ जाओ। संसारदुक्खमहणि घित्तुं आराहणपडागं // 149 // ता देहाइसु सुविहिय ! मा पडिबंधं कर्हिचि कुव्वित्था / अणसणविहिं पवज्जसु चिइवंदणवियडणाईयं // 150 // इच्छं ति भणिय खवगे ठिए परिक्खित्तु तस्स उच्छाहं / पडिचारगेहि वि समं संघेण य संपहारित्ता // 151 // अह निज्जामयगुरुणो सम्मं नाऊण अणसणावसरं / खवगं भत्तपरिनं कारिती संघपच्चक्खं // 152 // तो खवगो जिणनाहे आराहणनायगे तिहिं थुईहिं। . वंदंइ निविग्घत्थं हरिसवसुभिन्नरोमंचो // 153 // तह सावगो वि सम्मं सावगधम्मं समुज्जमेमाणो / आराहणं पउंजइ इमेण विहिणा खवियदेहो // 154 // काउं चेइयपूर्य, जहविहवं पूइउं चउहसंघं / उचियं जणोवयारं, काउं च कुटुंबसुत्थत्तं // 155 // 13