________________ // 285 // // 286 // // 287 // // 288 // // 289 // // 290 // उज्झायाणं च नमो संगोवंगं सुयं धरताणं / सिस्सगणस्स हियट्ठा झरमाणाणं च तं चेव सुत्तस्स होइ अत्थो सुत्तं पालैंति ते उवज्झाया। अज्झावयाण तम्हा पणमह परमेण विणएण सज्झायसलिलनिवहं झरंति जे गिरियड व्व तद्दिदयहं / उज्झायाण य ताणं भत्तीए अहं पणिवयामि जे कम्मखयट्ठाए सुतं पाढेंति सुद्धलेसिल्ला / न गणेति निययदुक्खं पणओ अज्झावएं ते हं उज्झायाणं तेसिं भदं जे नाण-दंसणसमिद्धा / बहुभवियबोहिजणयं झरंति सुत्तं सयाकालं अज्झावयस्स पणमह जस्स पसाएण सव्वसुत्ताणि / नजंति पढिज्जंति य पढमं चिय सव्वसाहूहिं उवझायनमोक्कारो कीरंतो मरणदेसकालम्मि / कुगई रुंभइ सहसा, सोग्गइमग्गम्मि उवणेइ उवझायनमोक्कारो लाभं बोहीए कुणइ कीरंतो। तम्हा पणमह सव्वायरेण अज्झावयं साहुं उवझायनमोक्कारो सुहाण सव्वाण होइ तं मूलं / दुक्खक्खयं च काउं जीवं ठावेइ मोक्खम्मि साहूण नमोक्कारं करेमि तिविहेण करणजोएणं / जेण भवलक्खबद्धं खणेण पावं विणासेमि पणमह तिगुत्तिगुत्ते विलुत्तमिच्छत्तपत्तसम्मत्ते / कम्मकरवत्तपत्ते उत्तमसत्ते पणिवयामि . पंचसु समिईसु जए तिसल्लपडिपेल्लणम्मि गुरुमल्ले। . जउविकहापम्मुक्के मय-मोहविवज्जिए धीरे 208 // 291 // // 292 // // 293 // // 294 // // 295 // // 296 //