________________ // 168 // // 169 // // 170 // // 11 // पहला,पत तए जाय ! // 172 / // 173 // छेयण-फालण-डाहे मुसुमूरण भंजणे य जं मरणं / वणकायमुवगएणं तं बहुसो विसहियं जीव ! तसकायत्ते बहुसो खइओ जीवेण जीवमाणो हं / अकंतो पाएहिं मओ उ सी-उण्हदुक्खेहि सेल्लेहिं हओ बहुसो सूयरभावम्मि तं मओ रण्णे। हरिणत्तणे वि निहओ खुरप्प-सरभिन्नपोट्टिलो .. सिंघेण पुणो खईओ मुसुमूरियसंधिबंधणावयवो / एयाई चिंतयंतो विसहसु वियणाओ घोराओ तित्तिर-कवोयसउणत्तणम्मि तह ससय-मोरपसुभावे / पासत्थं चिय मरणं बहुसो, पत्तं तए जीय ! पारद्धिएण पहओ णट्ठो सरसल्लवेयणायिल्ो / ण य तं मओ ण जीओ मुच्छामोहं उवगओ सि दट्ठण पदीवसिहं किर एयं णिम्मलं महारयणं / 'गेण्हामि' त्ति सयण्हं पयंगभावम्मि दड्ढो सि बडिसेण मच्छभावे, गीएण मयत्तणे विवण्णो सि / गंधेण महुयरत्ते बहुसो रे ! पाविओ मरणं . किं वा बहुएण भणिएण? जाई जाइं जाओ अणंतसो एक्कमेक्कभेयाए। तत्थ य तत्थ मओ हं अव्वो ! बालेण मरणेणं णरयम्मि जीव ! तुमए णाणादुक्खाइं जाई सहियाई / एण्हिं ताई सरंतो विसहेज्जसु वेयणं एवं करवत्त-कुंभि-रुक्खे सिंबलि-वेयरणि-वालुयापुलिणे / जइ सुमरसि एयाइं ता विसहसु वेयणं एयं / 198 // 174 // // 175 // // 176 // // 177 // // 17 //