________________ पडिसिद्धाई जाइं जिणेहिं एयम्मि मोक्खमग्गम्मि / जइ मे ताई कयाइं पडिक्कमे ताइं सव्वाई // 121 // दिटुंत-हेउजुत्तं तेहिं विउत्तं च सद्दहेयव्वं / जइ किंचि ण सद्दहियं ता मिच्छा दुक्कडं तस्स // 122 // जे जह भणिए अत्थे जिणिदयंदेहि समियपावेहिं / विवरीए जइ भणिए मिच्छा मिहं दुक्कडं तस्स . // 123 // उस्सुत्तो उम्मग्गो ओकप्पो जो कओ अईयारो। तं जिंदण-गरहाहिं सुज्झउ आलोयणेणं च . // 124 // आलोयणाए अरिहा जे दोसा ते इहं समालोए। . सुझंति पडिक्कमणे दोसाओ पडिकमे ताण // 125 // उभएण वि अइयारा केवि विसुझंति ते. विसोहेमि / पारिद्धावणिएणं अहसुद्धी तं चिय करेमि / / 126 // काउस्सग्गेण तहा अइयारा केइ जे विसुज्झति / अहवा तवेण अन्ने करेमि अब्मुट्ठिओ तं पि . // 127 // छेएण विसुझंती, मूलेण वि के वि ते पवनो हं।। अणवठ्ठावणजोग्गे पडिवन्नो जाव पारंची // 128 // दसविहपायच्छित्ते जे जहजोग्गा कमेण ते सव्वे। सुज्झंतु मज्झ संपइ भावेण पडिक्कमंतस्स // 129 // एवं च आलोइयपडिकंतो विसुज्झमाणलेसो अउव्वकरणावनो खवगसेढीए समुप्पण्णणाण-दसणो वीरियअंतरायआउक्खीणो अंतगर्छ वइरगुत्तमुणिवरो त्ति ___ // 130 // एवं च सयंभुदेवमहरिसी वि जाणिऊण नियआउयपरिमाणं कयदव्वभावसंलेहणाकम्मो कयकायव्ववावारों य निसण्णो संथारए, भणिउं च समाढत्तो // 131 // 14