________________ // 258 // // 259 // // 260 // वज्जेइ अट्ट-रुदं संसारविवड्डणं कुगइमूलं / सग्गाइसिद्धिहेउं धम्मं सुकं च झाइज्जा . राउग्ग थी नर वहुग्गरसरयार(?)सुसडढ् दालिदं / जम्हा हणंति बोहिं दन्नि(?दु नि)याणे नवविहे चयसु कंदप्प देवकिब्बिस अभिओगा आसुरी य सम्मोहा / इह-परलोए कामं जीविय-मरणं च नासंतु (?) आराहणमुक्कोसं आराहिय जाइ अच्चुयं सड्डो / साहू सिद्धिं गच्छइ, दो वि जहन्नेण सोहम्मे भव्वाण सिद्धिहेउं भणिया आराहणा उ संखेवं / सम्मं करेइ जो सो सिद्धिसुहं लहइ धम्मेणं अप्पक्खरा महत्था संभव्वजीवाण अत्थसिद्धिकरी / सासयसिवसुक्खफला पज्जंताराहणा भणिया - // 261 // // 262 // // 263 // श्रीउद्योतनसूरिविरचित कुवलयमालाकथांतर्गतं ... पंचण्हमंतगडकेवलीणं ॥आराहणापणगं // मणिरहकुमारसाहू कामगंइंदो वि मुणिवरो भयवं / वईरगुत्तो य मुणी सयंभुदत्तो(? देवो) महरिसि त्ति महरहसाहू य तहा पंच वि एए तवं च काऊण / वीरवरस्स भगवओ अंते आलोयणं दाउं आराहेऊण तओ. जिणोवइद्वेण चेव मग्गेणं / निट्ठवियअट्ठकम्मा अंतगडा केवली जाया जह मुणिवरेहिं एएहिं झोसियं कम्मसेन्नमसुहं पि / तह अनेण वि मुणिणा झोसेयव्वं पयत्तेणं 183 // 2 // // 3 //