________________ पढममणिच्च मसरणं एगत्तं अन्नयं च संसारं / असुहं लोगसहावं कम्मासव कम्मसंवरणं // 246 // कम्मस्स य निज्जरणं उत्तमगुणभावणा दुलहबोहिं। / इय भावणाओ बारस भावेसु तुमं सुदढचित्तो // 247 // जइ कह वि वेयणत्तो छुहिओ सो चलइ नियपइन्नाओ / तो सुगुरू उच्छाहं सुपइन्ने महुरवयणेणं // 248 // सुण सोम ! अणन्नमणो एयं परिपालियं अणेगेहिं / उवसग्गेहिं न भग्गं ते दिटुंते मणे धरसु . // 249 // जिणवर-गणहर-मुणिवर-समणी-सावय-सुसावियाईहिं / हय-गयतिरियाईहि य बालतवस्सीहि नो चत्ता // 250 // तिनो य भवसमुद्दो इमेण जम्मेण होइ दुहछेओ। अट्ठविहकम्ममुक्को अइरेणं लहसि निव्वाणं // 251 // इय उवसमसंजुत्तो सरीरपीडाइ झाइ अट्टं वा / तो सुगुरू एगंते कवयं उववाइयं देइ . // 252 // तेण कयसदिढचित्तों मोहबलं हणइ सुगुरुवयणेणं / पंचपरमिट्ठिसारं नवकारं झायई खवगो // 253 // पंचनमुक्कारसमा अंते वच्चंति जस्स दस पाणा / सो जइ न जाइ मुक्खं अवस्स वेमाणिओ होइ // 254 // हिययगुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निच्चं / कम्मट्ठगंठिदोघट्टघट्टयं ताण परिनटुं // 255 // जिणसासणस्स सारो चउदसपुव्वाण जो समुद्धारो। . जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ ? // 256 // नवकारपभावेणं जीवो नासेइ दुरियसंघायं / नंदमणियारसिट्ठी दिटुंतो इत्थ वत्थुम्मि // 257 // 182