________________ सिरिवच्छ-तिलय-मउडाइयाणि पडिमाण आभरणगाणि / विहियाई, तहाऽऽजम्मं सामाइयमुभयसंझं पि // 102 पव्वेसु पोसहाई दीण-अणाहाण दुत्थियजणाणं / उद्धरणं, तह धम्मियजणम्मि बहुमाणकरणाई // 103 विहियं तह साहिज्जं सत्तीए. जं गिलाण-असहूणं / धरिया नियहिययम्मी आजम्में देव-गुरुभत्ती // 104 रइओ परोवयारो, तहेव विणयारिहेसु विणओ वि / करुणा य पाणिवग्गेसु पक्खवाओ गुणड्ढेसु . // 105 / एमाई अन्नं पि य जिणवरवयणाणुसारि जं सुकडं। . . कय कारिय अणुमोइयमहयं तं सव्वमणुमोए // 106 / सद्दे रूवे य रसे गंधे फासे मणुनविसएसु / मा कुणसु धीर ! गिद्धि दुईते इंदिए दमसु . // 107 / संघं जिणवरसिटुं सूरि-उवज्झाय-साहु-संजइओ / संबंधि-नाइउत्तमपुरिसे आसाइए खामे . // 108 // इय खामिय सयणजणं भत्तिब्भरनिब्भरो विणयपणओ। खामेइ सयलसंघं संवेगुल्लसियमुहकमलो // 109 // पंचमहव्वयजुत्ता सुसाहुणो साहुणीओ सुचरित्ता / सम्मत्ताइगुणजुया सुसावया सावियाओ य. // 110 // एसो चउविहसंघो जिणिदआणारओ गुणमहग्यो / तित्थयराण वि पुज्जो सुर-असुर-नरिंदनमणिज्जो // 111 // जे गुरुयकम्मजीवा संघं अवमाणयंति ते सययं / . नेरइयदुहं दुसहं सहति संसारकंतारे // 11 // संघपसायाओ जिया लहंति तित्थयर-गणहरत्ताणि / सुर-असुर-चक्कि-केसव-बलाण रिद्धी सिवसुहं च 74.9ALA 170