________________ // 31 // // 33 // // 34 // // 35 // मिच्छत्तं परपीडं अहिगरणं जं च देसिओ कुपहो / आणाबझं विहियं दुक्कडं गरिहामि तं सव्वं अन्नाणंधेण मए मइमलहंतेण कह वि जिणसमए / इत्थभवे अनेसु य भवेसु जे केइ संठविया आसि कुदेव-कुगुरुणो कुमग्गदेसण-कुधम्मकहणाई। तित्थुच्छेय कुतित्थयनिम्माणाई अमाणाई नाणाइमग्गलोवो जो को वि कओ तहा कुतत्ताइ / जाइं परूवियाइं ताइं सव्वाइं गरिहामि . जोई-विज्जयसत्थाण सउणसत्थाण कामसत्थाणं / वत्थूविज्जाईणं तह धणुविज्जाइयाणं पि लक्खण-छंदो-ऽलंकार-भरहनाडय-पमाण-नीईणं / एमाइकुसत्थाणं निम्माणं तमिह गरिहामि जिण-सूरि-वायगाणं संघस्स य जं कया मयाऽवना / सत्तेण धम्मकज्जं जं न कयं तं पि गरिहामि .. जिणभवणपाडणं बिंबभंजणं तह य बिंबगालणयं / बिंबा-कलसाइ-पुत्थयविक्किणणं जं च कह वि कयं चेइय-गुरुगयदव्वं उविक्खियं, भक्खियं च मूढेणं / आया(?णा)णं जं लोवणं च विहियं तयं निदे . अणायरो कओ जं च, पमाओ विहिओ य जं / धम्मस्सुप्पाइया खिसा, असुत्तं च परूवियं चरित्ते दंसणे नाणे अईआरो य जो कओ। नाऽऽलोइओ य मूढेणं, पायछित्तं च नो कयं सव्वहा वितहायारं सरामि, न सरामि जं। निंदामि तमहं पावं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / 164 // 36 // // 37 // // 38 // // 39 // // 40 // // 41 //