________________ // 984 // // 985 // // 986 // इय सुंदराई जिणवीरभद्दभणियाइं पवयणाहिंतो / चिरमुच्चिणि सुपएसा रइया आराहणपडाया वण्णाणमाणुपुव्वी गाहद्धपयाण पाययाणं च / कत्थइ कहिचि रइया पुव्वपसिद्धाण समईए आराहणापसत्थम्मि एत्थ सत्थम्मि गंथपरिमाणं / नउयाइं नव सयाई अत्थागाहम्मि गाहाणं विक्कमनिवकालाओ अट्ठत्तरिमे समासहस्सम्मि / एसा सव्वंगिहिया गहिया गाहाहिं सरलाहिं मोहेण मंदमइणा इमम्मि जमणागमं मए लिहियं / तं महरिसिणो मरिसिंतु, अहव सोहिंतु करुणाए भवगहणभमणरीणा लहंति निव्वुइसुहं जमल्लीणा / तं कप्पडुमसुहयं नंदउ जिणसासणं सुइरं // 987 // // 988 // // 989 // // 2 // ॥पज़्जंताराहणा // (आराहणासारो) सिवसुहसिरीइ हेउं वंदिय वीरं सुलद्धसुकयफलं / संजममंदिरहेउं भणामि आराहणासारं चउवीसादारेहिं संलेहण ठाण वियडणा सम्मं / अणु-गुणवयाणि दुनऽवि पावट्ठाणाणि सागारं चठसरणगमण दुक्कडगरिहा सुकडाणुमोयणा विसए / संघाइखामणं तह चउगइजीवाण खामणयं चेइयनमणुस्सग्गं अणसण मणुसिट्टि भावणा कवयं / नवकार सुहज्झाणे नियाण मइयार मेयफलं संलेहणा इ दुविहा अभिंतरिया य बाहिरा चेव। . अभिंतरा कसाएसु बाहिरा होइ हु सरीरे * 11 // 4 //