________________ // 84 // // 85 // // 86 // // 87 // - // 88 // // 89 // असइ दुगाई फलगा असई घणकंबिओ अहऽत्थुरणं / संथारुत्तर दुन्नी बीयपएणं तु कप्पा वि . तह वि असंथरमाणे कुसमाईणं तु अझुसिरतणाई। तस्सऽसइऽसंथरे वा झुसिरतणाई तओ पच्छा कोयव-पावारग-नवय-तूलिया-ऽऽलिंगिणी य भूमीए / एमेव अणहियासे संथारगृमाइ पल्लंके। संथारो मउओ से समाहिहेडं तु होइ कायव्वो / तह वि य अविसहमाणे अणुसासिज्जा तओ एवं धीरपुरिसपन्नत्ते सप्पुरिसनिसेविए अणसणम्मि। . धन्ना सिलायलगया निरावयक्खा निवजंति जइ ताव सावयाकुलगिरिकंदर-विसमकड़ग-दुग्गेसु / साहिति उत्तमटुं धिइधणियसहायगा धीरा किं पुण अणगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण / परलोइए न सक्का साहेडं अप्पणो. अटुं ? जिणवयणमप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुणितेणं / सक्का हु साहुमज्झे संसारमहोयहि तरिउँ तस्स य चरिमाहारो इट्ठो दायव्वो तण्हछेयट्ठा / / सव्वस्स चरिमकाले अईव तण्हा समुप्पज्जे विगईओ सव्वओयण अट्ठारसवंजणाइं पाणं च / दाउं समाहिहेउं करीइ से तण्हवुच्छेओ अहवा काल-सहावाणुमओ आसेविओ व जो पुव्वं / . दिट्ठो सुओ व दिज्जइ जयणाए चउव्विहाऽऽहारो तण्हाछेयम्मि कए न तस्स तहियं पवत्तए भावो। चरिमं च एस भुंजइ सद्धाजणणं दुपक्खे वि . // 90 // // 91 // // 92 // // 93 // // 94 // // 95 // .