________________ जत्तोहुत्तं गामो तत्तो सीसं ठवित्तु तं वोत्तुं / गच्छंति थंडिलं पइ अपच्छओ तं नियच्छंता // 876 // सुत्त-ऽत्थ-तदुभयविऊ पुणज्ज (?) चित्तूण पाणग कुसे य / गच्छइ य तणाई सो समाई सव्वत्थ संथरइ // 877 // विसमा जइ हुज्ज तणा उवरि मज्झे व हिट्ठओ वा वि। . मरणं गेलणं वा ता गणहर-वसह-भिक्खूणं . // 878 // जत्थ य नत्थि तणाई चुण्णेहि व तत्थ केसरेहिं वा / कायव्वोऽत्थ ककारो हेट्ठि तकारं च बंधिज्जा . // 879 // जाइ दिसाए गामो तत्तो सीसं तु होइ कायव्वं / ... उटुंत रक्खणट्ठा न नियत्तिज्जा पयक्खिणिउं // 880 // चिंधट्ठा रयहरणं दोसा उ भवे अचिंधकरणम्मि। . गच्छिज्ज व सो मिच्छं, राया व करिज्ज गामवहं // 881 // जो जहियं सो तत्तो नियत्तई अविहिकाउसग्गं च / आगम्म गुरुसयासे कुणंति, तत्थेव न कुणंति. // 882 // खमणमसज्झायं वा रायणिय-महानिनाय-नियगेसु / कायव्वं नियमेणं असिवादिभए न कायव्वं // 883 // अवरज्जु तओ थेरा सुत्त-ऽत्थविसारया पलोइंति / खवयसरीरं, तत्तो सुहाऽसुहगई वियाणंति // 884 // तरुसिहरगए सीसे निव्वाण, विमाणवासि थलकरणे / जोइसिय वाणमंतर समम्मि, खड्डाइ भवणवई // 885 // जइ दिवसे संचिक्खइ तमणालिंगं च अक्खयं मडयं / तइ वरिसाणि सुभिक्खं खेम-सिवं तम्मि रज्जम्मि // 886 // जं वा दिसमुवणीयं ससरीरं सावएहिं खवयस्स / / तीइ दिसाइ सुभिक्खं विहार जोगं सुविहियाणं // 887 // 152