________________ इय चवणसमयभयविहुरविबुहविरसं दसं निएऊणं / मुत्तुं धम्मं धीराण किं व हिययम्मि संठाउ ? . // 780 // एयमणंतं दुक्खं चउगइगहणे परव्वसं सोढुं / तत्तो अणंतभागं सहसु इमं सम्ममप्पवसो - // 781 // तण्हा अणंतखुत्तो संसारे तारिसी. तुमं आसी। . जं पसमेउं सव्वोदहीणमुदयं न तीरिज्जा - // 782 // आसी अणंतखुत्तो संसारे ते खुहा वि तारिसिया / जं पसमेउं सव्वो पुग्गलकाओ वि न तरिज्जा // 783 // जइ तारिसिया तण्हा छुहा य अवसेण ते तया सोढा / धम्मो त्ति इमा सवसो कह पुण सोढुं न तीरिज्जा? // 784 // सुइपाणएण अणुसट्ठिभोयणेण य सया उवग्गहिओ। झाणोसहेण तिव्वा वि वेयणा तीरए सीढुं // 785 // अरहंत-सिद्ध-केवलिपच्चक्खं सव्वसंघसक्खिस्स / पच्चक्खाणस्स कयस्स भंजणाओ वरं मरणं // 786 // जइ ता कया पमाणं अरहंतादी हविज्ज खमएण / तस्सक्खियं कयं सो पच्चक्खाणं न भंजिज्जा // 787 // सक्खिकयरायहीलणमावहइ नरस्स जह महादोसं। तह जिणवरादिआसायणा वि महदोसमावहइ // 788 // न तहा दोसं पावः पच्चक्खाणमकरित्तु कालगओ। जह भंजणाओ पावइ तस्सेव अबोहिबीयकयं // 789 // संलेहणापरिस्सममिमं कयं दुक्करं च सामण्णं / मा अप्पसोक्खहेउं तिलोगसारं विणासेहि // 790 // धीरपुस्सिपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं उवणमित्ता। धण्णा निरावयक्खा संथारगया विवज्जंति . // 791 // 144