________________ जिणवयणममयभूयं महुरं कण्णाहुइं सुणितेणं / सक्का हु संघमज्झे साहेउं उत्तिमं अटुं नारय-तिरियगईसु य माणुस-देवत्तणेसु संतेण / जं पत्तं सुह-दुक्खं तं तह चिंतेसु तच्चित्तो // 757 // नरएसु वेयणाओ सी-उण्हकयाओ बहुवियप्पाओ / कायनिमित्तं पत्तो अणंतनुत्तो सुतिक्खाओ . // 758 // जइ को वि मेरुमित्तं अयपिंडं पक्खिविज्ज नरयम्मि / उण्हे भूमिमपत्तो निमिसेण तओ विलीएज्जा // 759 // तह चेव तप्पमाणो पज्जलिओ सीयनरयपक्खित्तो। ...... सीए भूमिमपत्तो निमिसेण सडेज्ज लोहुंडो // 760 // जं सूल-क्ख(?कू)डसामलि-वेयरणि-कलंबवालुयाऽसिवणे / नरए लोहंगारे खाविज्जंतो दुहं पत्तो // 761 // भज्जिययं पिव जं भज्जिओ सि, जं गालिओ सि रसयं व। . जं कप्पिओ सि. वल्लूरयं व, चुण्णं व चुण्णिकओ // 762 // जलिओ तत्तकवल्लीहिं जं च कुंटीहिं कुट्टिओ जं च / भिण्णो भल्लीहिं, फलेहिं फालिओ तं विचिंतेसु // 763 // तिरिएसु छुहा-तण्हुण्ह-सीय-सूलंकुसंक-दमणकयं / वह-बंध-मरणजणियं धणियं चिंतेसु तं दुक्खं . // 764 // पियविरहे अप्पियसंगमे य मणुयत्तणम्मि जं दुक्खं / / धणहरण-दारधरिसण-दारिद्दोवद्दवकयं च // 765 // खंडण-मुंडण-ताडण-जर-रोग-विओग-सोग-संतावं / . सारीर माणसं तदुभयं च सम्मं विचितेसु // 766 // आणाऽभिओय-परिभव-ईसा-ऽमरिसाइ माणसं दुक्खं / देवेसु चवणचिंता-विओगविहुरस्स चिंतेसु // 767 // 142