________________ कोहेण परवहं पुण मरिठं पत्थेइ अप्पसत्थमिणं / निवउग्गसेण-बारवइघाइणो जह पसिद्धाइं .. - // 684 // देविय-माणुसभोए नारीसर-सिट्ठि-सत्थवाहाई। .. हरि-हलहर-चक्कहरे पत्थेमाणं च भोगकयं // 685 // संजमसिहरारूढो घोरतवपरक्कमो तिगुत्तो वि। इति जो कुणइ नियाणं संसारं सो पवड्डेइ // 686 # अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं / सो कायमणिकएणं वेरुलियमणि पणासेइ // 687 // पुरिसत्ताइनियाणं पि. मुक्खकामा मुणी न इच्छंति / जं पुरिसत्ताइकओ भवो(? वे) भवो(? वे) घोरसंसारो // 688 // दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो य / एयं पत्थेयव्वं, न पत्थणिज्जं तओ अण्णं // 689 // पब्भट्ठबोहिलाभा मायासल्लेण आसि पूइमुही / दासी सायरदत्तस्स पुष्पदंतस्स विरया वि // 690 // मिच्छत्तसल्लदोसा पियधम्मो साहुवच्छलो संतो। बहुदुक्खे संसारे सुइरं भमिओ मिरीई वि // 691 // उज्झियनियाणसल्लो पंचहि समिईहिं तिहि उ गुत्तीहि / पंचमहव्वयरक्खं कयसिवसोक्खं पसाहेइ // 692 // कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं / निग्गिण्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं // 693 // जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तमं तिलोईए। . तं जाण कसायाणं वुड्डि-क्खयहेउयं सव्वं // 694 // कोहेण नंदमाई निहया, माणेण फरुसरामाई। . निहणमणज्जा य गया मायाए पंडरज्जाई . // 695 // 136