________________ // 504 // // 505 // // 506 // // 507 // // 508 // परिचत्तविसयसंगे फासुयआहार-पाणभोइम्मि। मण-वयण-कायगुत्ते होइ अहिंसावयं सुद्धं .. सच्चमचोरिकं बंभचेरमपरिग्गहो अनिसिभत्तं / जं च इमाइमहिंसारक्खा दिक्खा य दाणं च पायमजीवाहारा न संति, सव्वे जिया जियाहारा / जे य अजीवाहारा तिलोयलोयस्स ते सारा सव्वे वि य संबंधा पत्ता जीवेण सव्वजीवेहिं / तो मारितो जीवे मारइ संबंधिणो सव्वे जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ / ता सव्वजीवहिंसा परिचत्ता अप्प(त्त)काहिं अपमत्तस्स पवित्ती मण-वइ-काएहिं जा अहिंसा सा / भण्णइ हिंसा स च्चिय ज च्चिय चिट्ठा पमत्तस्स . वह-बंध-रोह-धणहरण-जायणाओ य वरमिहं चेव / अच्छेप्पत्तं पावइ निव्विसयत्तं च मारितो अप्पाउमणारुग्गं दोहग्गमरूवया य दोगच्चं / . दुग्गंध-वण्ण-रसया होइ वहंतस्स परलोए मारेइ एगमवि जो जीवं सो बहुसु जम्मकोडीसु / बहुसो मारिजंतो मरइ विहाणेहिं बहुएहिं जावइयाई दुक्खाई हुंति चउगइगयस्स जीवस्स / ... सव्वाई ताई हिंसाफलाई निउणं वियाणाहि . तम्हा इह-परलोए दुक्खाणि सया अणिच्छमाणेणं / उवओगो कायव्वो जीवदयाए सया मुणिणा जं किंचि सुहमुदारं पहुत्तणं पयइसुंदरं जं च / आरोग्गं सोहग्गं तं तमहिंसाफलं सव्वं // 510 // // 511 // // 512 // // 513 // // 514 // . . . 121