________________ साहारणो य दुविहो सुहुमो तह बायरो य नायव्वो। पज्जत्ताऽपज्जत्ता भेया सव्वे वि बावीसं // 492 // दु-ति-चउरिदिय विगला, पणिदि सण्णि(?अ)-असण्णिणो दुविहा। पज्जत्ताऽपज्जत्ताभेएण तसा दसवियप्पा // 493 // जह ते न पियं दुक्खं जाणिय तह चेव सव्वजीवाणं / सव्वायरमुवउत्तो अप्पोवम्मेण कुणसु दयं // 494 // तण्हा-छुहाइपरिताविओ वि जीवाण घायणं किच्चा / पडियारं काउं जे मा तं चिंतेसि लहसुसई .. // 495 // 'तेलोक-जीवियाणं वरेहि एगयरयं' ति देवेहिं। . भणिए को तेलोकं वरेज्ज नियजीवियं मुत्तुं ? // 496 // जं एवं तेलोकं नऽग्घइ जीवस्स जीवियं तम्हा / जीवियघाओ जीवस्स होइ तेलोक्कघायंसमो // 497 // थोवत्थोवं संजममावज्जिय जह महं महुयरीहिं / तिहुयणसारं हिंसानावापूरेहिं मा चयसु // 498 // तुंगं न मंदराओ, आगासाओ विसालयं नत्थि। जह, तह जयम्मि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्थि // 499 // जह आगासे लोगा, दीव-समुद्दा जहा य भूमीए / तह जाण अहिंसाए ठियाणि तव-दाण-सीलाणि . // 500 // दाणं निस्संग तवो दिक्खा देवच्चणं सुहच्चाओ। ते जीवदयाइ विणा सव्वे वि निरत्थया हुति // 501 // जइ नाम परमधम्मो गो-बंभण-महिलवहनियत्तीए / . ता कह न होइ परमो धम्मो जा सव्वजीवदया ? // 502 // जं जीववहेण विणा विसयसुहं नत्थि जीवलोयम्मि / / ता जीवदया जायइ महव्वयं विसयविमुहस्स // 503 // 120