________________ // 432 // // 433 // // 434 // // 435 // // 436 // // 437 // अहवा समाहिहेउं सागारं चयइ तिविहमाहारं / तो पाणयं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकालं . तो सो गुरुवयणेणं मत्थंयरइअंजली कयपणामो / खामेइ सव्वसंघं संवेयं संजणेमाणो आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य / जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि सव्वे अवराहपए खामेमि अहं, खमेउ मे भयवं / अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स इय खामिउं पवत्तो अणुत्तरं तव-समाहिमारूढो / पप्फोडतो विहरइ बहुभवबाहाकरं कम्म भवसयसहस्सजणियं विहडइ अंतोमुत्तमित्तेण / . सम्मत्तुप्पत्तीए पच्चक्खाणे विसेसेणं . विहिणा इमेण धीरो कमेण काउं ममत्तवोच्छेयं / . संलिहियसुद्धभावो समाहिलाभं पसाहेइ . भव्वाण सिद्धिवहुसंगमम्मि जा संधि-विग्गहवियड्ढा / दूइ व्व निव्वुइयरी सुयमयदेवीइ तीइ नमो भणियं ममत्तछेयं, समाहिलाभं भणामि एत्ताहे। पडिदाराणि भणिस्सं तम्मि पुणो अट्ठ लट्ठाई अणुसट्टि सारणा तह कवयं समया य झाण लेसाओ / आराहणाफलं विज़हणा य इणमो समासेणं निज्जमया आयरिया संथारगयस्स दिति अणुसहूिँ / संवेयं निव्वेयं जणयंता कनजावं से नीसल्लो कयसोही छिण्णममत्तो सए वि देहम्मि / इणमो कुणसु पसत्थं च भावसंलेहणमियाणि // 438 // // 439 // // 440 // // 441 // // 442 // // 443 // 115