________________ // 264 // // 265 // // 266 // // 267 // // 268 // // 269 // आहारमओ जीवो कहिंचि आहारविरहिओ संतो / अट्टवसट्टो न रमइ पसत्थतव-संजमारामे जिणवयणामयसुइपाणएण सरसाणुसट्ठिवयणेण / तण्हा-छुहाकिलंतो वि होज्ज झाणम्मि आउत्तो पढमेण व दुच्चेण व कयाइ उब्बाहिओ अदढधम्मो / कलुणाकोलुणियं वा जायणकिवणत्तणं कुज्जा उक्कूविज्ज व सहसा, निग्गच्छिज्ज व करिज्ज उड्डाहं / गच्छिज्ज व मिच्छत्तं, मरिज्ज असमाहिमरणेणं तस्स उवाएण तओ समाहिकरणाणि कुणइ गीयत्थो / उस्सग्गऽववायविऊ विहिणा हिययं पसार्मितो जिणवयणसुइपहावा पावियपसमो पणट्ठमोहतमो / गयपरिओस-पओसो विराग-रोसो सुहं. सुयइ निम्महिय मोहजोहं, समच्छरं रागरायमुद्धरिउं / .. भुंजइ चउरंगबलेण सो वि निव्वाणरज्जसुहं . गीयत्थपायमूले हुँति गुणा एवमाइया बहवे / . न य होइ संकिलेसो, होइ समाही, न य विवत्ती पंचविहं ववहारं जो जाणइ तत्तओ सवित्थारं / 'बहुसो य दिट्ठपट्ठावओ य.वहारवं नाम .. आणा सुय आगम धारणे य जीए य हुंति ववहारा / एएसिं सवित्थारा परूवणा सुत्तनिद्दिट्ठा दव्वं खित्तं कालं भावं करण परिणाममुच्छाहं / संघयणं परियायं आगमपुरिसं च विण्णाय मुत्तूणं राग-दोसे ववहारं पट्टवेइ सो तस्स / ववहारमयाणंतो अयसं कम्मं च आदियइ // 270 // // 271 // // 272 // // 273 // // 274 // // 275 // - 101 .