________________ मज्जाररसियसरिसं सुंदर ! तं मा हु काहिसि विहारं / मा नासेहिवि(?सि) दुण्णि वि, अप्पाणं चेव गच्छं च // 180 // वज्जेह वज्जणिज्जं, सय-परपक्खे तहा विरोहं च / वायं असमाहिकरं, विस-ऽग्गिभूए कसाए य // 181 // जो सघरं पि पलित्तं निच्छइ विज्झाविउं पमाएणं / कह सो सद्दहियव्वो परघरदाहं पसामेउं ? // 182 / / नाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि य तीसु समयसारेसु। . नचएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं च न गंणी सो . // 183 // नाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि य तीसु समयसारेसु / चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं गणहरो सो // 184 // पिंडं उवहिं सिज्जं उग्गम-उप्पायणेसणादीहिं / चारित्तक्खणट्ठा सोहिंतो होइ सुचरित्तों // 185 // एसा गणहरमेरा आयारत्थाण वण्णिया सुत्ते / सुइयसुईनिरयाणं अप्पच्छंदाण निग्गहणी // 186 // अप्परिसावी सम्मं समदंसी होसु सव्वकज्जेसु / सारक्खसु चक्टुं पिव सबाल-वुड्डाउलं गच्छं // 187 // अविणीए सासिंतो कारणकोवे वि मा हु मुंचिज्जा / सुयणु ! परिणामसुद्धि, रहस्समेसत्ति(? यं ति) सव्वत्थ // 188 // उप्पाइयपीडाण वि परिणामवसेण गइविसेसो सिं / जह गोव-खरग-सिद्धत्थयाण वीरं समासिज्जा // 189 // कण्णे कीलं छोढूण भगवओ सो महातमं पत्तो। . तं कर्द्धिता पत्ता सुरलोगं खरग-सिद्धत्था // 190 // मा कुण पमायमावस्सएसु संजम-तवोवहाणेसु / निस्सारे माणुस्से दुलहं बोहिं वियाणित्ता // 191 // 14