________________ // 480 // // 481 // // 482 // * // 483 // // 484 // // 485 // विवेको विनयो विद्या, वैराग्यं विभवो व्रतम् / विज्ञानं विश्ववाल्लभ्यं, फलं सुकृतवीरुधः यद्राज्यं न्यायसम्पन्नं, यच्छक्तिः शमशालिनी / यौवनं शीलरम्यं य,-त्तदुग्धं शर्करान्वितम् यद्वक्ता धर्मशास्त्रज्ञो, यत्कविः सत्यभाषकः / वल्लभो यद्विनीतात्मा, स शङ्खः क्षीरपूरितः स्थाने स्थितिमतिर्मान्या, रम्यं रूपं धनं धनम् / बलं बहु वचो वर्यं, पुंसां पुण्यवतां भवेत् सौजन्यं सङ्गतिः सद्भिः, शान्तिरिन्द्रियसंयमः / आत्मनिन्दा परश्लाघा, पन्थाः पुण्यवतामयम् करे दानं हृदि ध्यानं, मुखे मौनं गृहे धनम् / तीर्थे यानं गिरि ज्ञानं, मण्डनं महतामिदम् धर्मे कृपा गुरौ ब्रह्म, देवे विगतरागता / मित्रे प्रीतिर्नृपे नीतिः, सक्तुमध्ये लुठद् घृतम् / पूजाऽर्हतां गुरोः सेवा, सर्वज्ञवचसां श्रुतिः / पात्रे दानं सतां सङ्गः, फलं मनुजजन्मनः विभवे सति सन्तोषः, संयमः सति यौवने / पाण्डित्ये संति नम्रत्वं, हीरोऽयं कनकोपरि अर्हन्नतिर्गुरुप्रीति,-विरतिनिजयोषिति / . धर्मश्रुतिर्गुणासक्तिः, सद्यो यच्छति निर्वृतिम् दाने शक्तिः श्रुते भक्ति,-गुरूपास्तिर्गुणे रतिः / दमे मतिर्दयावृत्तिः, षडमी सुकृताङ्कराः जैनो धर्मः कुले जन्म, शुभ्रा कीर्तिः शुभा मतिः / गुणे रागः श्रियां त्यागः, पूर्वपुण्यैरवाप्यते // 486 // // 487 // // 488 // // 489 // // 490 // // 491 // 57