________________ देवो दलितरागारि,-र्गुरुस्त्यक्तपरिग्रहः / धर्मः प्रगुणकारुण्यो, मुक्तिमूलमिदं मतम् // 492 // आरोग्यं दत्तसौभाग्यं, जीवितं कीर्तिपावितम् / भोगान् सुभगसंयोगान्, लभन्ते धर्मकर्मठाः ... // 493 // सन्ततिः शुद्धसौजन्या, विभूति गभासुरा / विद्या विनयविख्याता, फलं धर्मतरोरिदम् // . 494 // दानं दहति दौर्गत्यं; शीलं सृजति संपदम् / तपस्तनोति तेजांसि, भावो भवति भूतये // 495 // दीर्घमायुर्यशश्चारु, शुद्धिं बुद्धि शुभां श्रियम् / प्राज्यं राज्यं सुखं शश्व,-इत्ते धर्मसुद्धमः // 496 // घटाः कामघटाः सर्वे, धेनवः कामधेनवः / वृक्षाः स्वर्गसदां वृक्षाः, सदा सुकृतशालिनाम् // 497 // सुवर्णमणिराजिष्णुः, सर्वालङ्कारशोभना / सूक्तरत्नावलिरियं, नानाभावविभासुरा // 498 // कृतिततिचित्तचमत्कृति,-कारिगुणा कान्तकान्तिकमनीया / नयनिपुणवचनरचना, सुन्दरतरवृत्तभावमध्यमणिः // 499 // वर्षे मुनियुगनरपति,-मिते तपागच्छजलधिशशिसदृशैः / श्री विजयसेनसूरि,-द्विरदैनिरमायि निर्मायैः // 500 // कण्ठपीठे लुठत्येषा, यदीये गुणहारिणी / मनांसि मोहयेन्नूनं, स सभाहरिणीदृशाम् // 501 // यस्याम्रमञ्जरीवैषा, तिष्ठत्यामोददा मुखे / कामोत्सवाय जायेत, कोकिलास्ये व तस्य वाक् // 502 // यदि नीतिमृगीनेत्रा,-मात्मसात्कर्तुमीहसे / ' निधेहि तदिमां कण्ठे, संवननौषधीमिव .. // 503 // 58