________________ कुपुत्रैः कुलविध्वंसो, जातमात्रैविधीयते / मूलादुन्मूलनाय स्यात्, कदल्यां फलसंभवः / // 276 // धने सत्यपि तेजस्वी, नैधते सुहृदं विना / पिधानरूद्धवातः किं, दीप: स्नेहे सुदीप्तिमान् ? - // 277 / / संपत्तौ च विपत्तौ च, महान् स्यात् समवैभवः / उदयेऽस्तमने चाऽपि, स्पष्टमूर्तिस्त्विषांपतिः // 278 // मूर्खाणामग्रतो वाचां, विलासो वाग्मिनां मुधा / लास्यं वेषसृजां वन्ध्यं, पुरतोऽन्धसभासदाम् . // 279 // सुखदुःखे समं स्यातां, सुहृदां सहवासिनाम् / .. सहैवोन्नतिपतने, स्तनयोरेकहत्स्थयोः / // 280 // संबन्धेऽपि दुराचार,-चञ्चवः स्युरपण्डिताः / का सुता का स्वसा काऽम्बा, पशूनामविवेकिनाम्? // 281 // प्रातिवेश्मिकदुःखे स्यु,-मूंदूनामसमाधयः / जातायां मूर्ध्नि पीडायां, किं दृशोर्न त्विषाम्पतिः ? // 282 // सेवाप्रडं भवेद्विश्वं, निष्ठुरेऽपि धनाद्भुते / - कीटकैः क्लृप्तपीडायां, केतक्यां किमु नादरः ? // 283 // शुद्धात्मनि गतेऽपि स्यात्, स्थानं तद्भावभावितम् / किं विक्रीतेऽपि कपूर, नास्पदं सौरभान्वितम् ? // 284 // नोज्झन्ति तद्गुणाः स्थानं, गतस्याऽपि दुरात्मनः / गन्धस्त्यजति किं पात्रं, निष्काशितेऽपि रामठे? // 285 // अतिप्रेयान् महात्माऽपि, भवेत्रावसरं विना। . यत्तकोदनवेलायां, शर्करा कर्करायते - // 286 // अधिकारात् स्यादर्थस्य, प्रतीतिः प्रतिभान्विंता। . रणे राजन्ति मातङ्गा, अत्र कुञ्जरनिर्णयः // 287 //