________________ // 87 // // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण। * ॥कूर्मनामाऽष्टमो दृष्टान्तः // किल कत्थइ वणगहणे अणेगजोयणसहस्सविच्छिण्णो। आसि दहो अइगुहिरो अणेगजलयरकुलाइण्णो अइबहलनिबिडसेवाल-पडलसंछाइओवरिमभागो / माहिसचम्मेणेव सो अवणद्धो भाइ सव्वत्थो केण वि कालवसेण य चटुलग्गीवो दुली परिभमंतो। संपत्तो उर्वरितले गीवा य पसारिया तेण सेवालपडलच्छिदं अह समए तम्मि तत्थ संजायं / दिट्ठो तेण मयंको पडिपुण्णो कोमुइ निसाए . जोइसचक्काणगओ निब्भरगयणस्स मज्झभायम्मि / खीरमहोयहिलहरी-समजोण्हाण्हावियदिसोहो आणंदपूरियत्थो तो चिंतइ कत्थ ? वा किंमेयंति ? / किं नाम एस सग्गो कि ? वा अच्चब्भुयं किमवि? किं मम एगस्स पलो-इएण? दंसेमि सयललोयस्स / इय चिंतिय निव्वुडो तेसिमण्णेसणनिमित्तं आणीय सयलसयणो जाव पलोएइ तं किरपओसं / नो पासइ वाउवसेण पूरियं तत्थ तं छिदं पत्ते वि कोमुइतम्मि दुल्लहो संसहरो य दहमज्झे / अब्भकओववद्दव-वज्जिओ य दुल्लहं एयं तह संसारमहद्दह-मज्झे मग्गाणं सयलजंतूणं / पुणरवि माणुसजम्मो अइदुल्लहो पुण्णहीणाणं // 5 // // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // . // 10 // 333