________________ // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // // 66 // // 67 // देवेहिं वयणमुत्तं मग्ग वरं पभणिओ वरेइ तओ। गणियं च देवदत्तं दंतिसहस्साहियं रज्जं कुम्मासेहिं सेसेहिं भोयणं तेण विहियं च / अमयमयभोयणेणेव तत्तिं संपाविओ बाढं बेण्णायडतडनयरं पओसकालम्मि पाविओ तत्थ / पंथिसहाए सुत्तो पभायसमयम्मि पेच्छेइ पडिपुण्णसोममंडल-मइधवलपहापहासियदिसोहं / एज्जंतमुयरदेसे पेच्छेइ अण्णो वि तं तत्थ' पडिबुद्धा ते जुगवं हट्ठा सुविणेण तम्मि तओ कालं। अइमंदभागधेओ कप्पडिओ भणइ सुविणमिणं सुविणफलं पहियाणं पुरओ पुच्छेइ ताव एक्केण / घयगुललित्तयमंडय-लाहो तुज्झत्ति वाहरियं पत्तो य बीयदिवसे छाइज्जं तम्मि कमिवि गेहम्मि। गिहपहुणा निद्दिट्ठो मंडओ तेण संपत्ता अइनिउणबुद्धिणा तेण चिंतिउं ताव मूलदेवेण / एत्तियफलो न एसो सुविणो अविआणगा एए . अह उग्गयम्मि रवि-मंडलम्मि काउं पभायकिच्चाई। कुसुमभरियंजली सो पत्तो सुविणुण्णु य सयासे परिपूजियतच्चरणो काऊण पयाहिणं पणयमउली। बद्धंजली निवेएइ ससहरपाणं सुविणयम्मि तो सुविणपाढगेणं रज्जफलं निच्छिऊण तं सुविणं / लावण्णामयपुण्णं कण्णं परिणाविओ पढमं एसो ते रज्जफलो सत्तदिणब्भतरे फुडं सुविणो। काउं तहत्ति अंजलि-पुडेण पडिवण्णमेएणं 322 // 68 // // 69 // // 70 // // 71 // // 72 // // 73 //