________________ // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // // 54 // // 55 // एवं बीए वि दिणे न तेण संभाविओ मणागं पि / तो पत्ते तइयदिणे तं अडवीमइच्छिया दो वि पत्तो गामसमीवे आसासंपायणेण मम एसो। सुट्ट्वयारकारि त्ति ? चिंतिअं मूलदेवेण भणिओ भट्ट ! पयट्टसु नियकज्जे संभलाहि मं जइया / संपत्तरज्जमेज्जसु तइया जं दिम्मि ते गामं दिण पहरदुगे गामं समागओ तत्थ भिक्खणट्ठाए / करकलिअपत्तपुडओ अकलिट्ठमणो पविट्ठो सो कुम्मासेहिं चिय केवलेहिं लद्धेहिं पूरओ पुडओ। चलिओ तलागतीरे अच्चंतमणुस्सुओ सणियं एत्थंतरं मासो-ववासंतववसविसोसियसरीरो। उज्जाणाइइंतो ग़ामाभिमुहो मुणी एगो. पारणगकए दिट्ठो अणेण पप्फुल्ललोयणमणेण। . तो चिंतिउं पयट्टो अस्थि मे पुण्णपरिवाडी . चीतामणीव लद्धो कइया वि मए य कप्परुक्खो वि / भोयणसमए एसो न लब्भइ भागहीणेहिं इह जुग्गं जम्मि खणे संपज्जए दाउमइमहग्घं तं / ता कुम्मास च्चिय मज्झ संपयं उत्तमं दाणं. अइबहलपुलयकलिओ हरिसंसुपउल्ललोयाजुगिल्लो / पभणइ भगवं गिण्हसु मम करुणं काउ कुम्मासे मुणिणावि दव्वखेत्ता-इएहिं परियाणिण संतुहूिँ। पज्जते ते पत्ते गहिया महयाभिमाणेण धण्णाणं अम्हाणं कुम्मासा होंति पारणए जत्थ / इय भणइ मूलदेवो जा परितुट्ठो तओ गयणे . 321 // 56 // // 57 // / / 58 // // 59 // // 60 // // 61 //