________________ // 68 // // प्र० 20 // ॥प्र० 21 // // 69 // // 70 // // प्र०२२॥ नवपुव्वी जो कुंचगमवराहिणमवि दयाइ नाइक्खे / तं नियजियनिरविक्खं नमामि मेयज्जमंतगडं रायगिहम्मि पुरवरे समुदाणट्ठा कयाइ हिंडंतो। संपत्तो तस्स घरे सुवनगारस्स पावस्स निप्फेडियाणि दुन्नि वि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि। न य संजमाउ चलिओ मेयज्जो मंदरगिरि व्व अभिरूढो वंसग्गे मुणिपवरे दट्ठ केवलं पत्तो / जो गिहिवेसधरो वि हु तमिलापुत्तं नमसामि उवसम-विवेय-संवरपयचिंतणवज्जदलियपावगिरी / सोढुवसग्गो पत्तो चिलाइपुत्तो सहस्सारे चालणगं पिव भयवं समंतओ जो कओ य कीडीहिं / घोरं सरीरविअणं तह वि हु अहियासए धीरो अड्डाइज्जेहिं राइदिएहिं पत्तं चिलाइपुत्तेण। .. देविदामरभवणं अच्छरगणसंकुलं रम्मं . दट्ठण समणमणहं सरित्तु जाइं य भवविरत्तमणो। अणुचरिउं मियचरियं मुखं पत्तो मियापुत्तो सुच्चा बहुपिडिय एगपिंडिओ दद्रुमिच्छइ तुमं ति / जाई सरित्तु बुद्धो सिद्धो तह इंदनागमणी अम्हाणमणाउट्टी जावज्जीवं ति सोउं मुणिवयणं / चितंतो धम्मरुई जाओ पत्तेयबुद्धजई पुक्खलवईइ पुंडरिगिणीइ राया अहेसि महपउमो / चउदसपुवी संलेहणाइ पत्तो महासुक्के तत्तो तेयलिपुत्तो वयणेणं पुट्टिलाइ जाइसरो / केवलनाणी भासइ तेयलिनामं सुअज्झयणं 283 // प्र० 23 // // 71 // // 72 // // 73 // // 74 // // 75 //