________________ प्रसन्नचन्द्रराजर्षिर्भावना भावितान्तरः / क्षणे न मुक्तकर्मा सन् ययौ केवलिनाङ्गतिम् / / 332 // पञ्चविंशतिप्रकारा भावना दर्शिता जिनैः / व्रतिनस्ताभिरेवात्र सद्गति यान्ति सत्वरम् // 333 / / दानशीलतपोवृत्तिर्भावनान्तर्गतम सती। स्वर्णसौरभवल्लोके कल्पतेऽभीष्टलब्धये // 334 // भावनारत्नदीपेन बाह्यमायातमोगणम् / खण्डयित्वाऽऽत्मबोधेन शान्ता यन्तु शिवालयम् // 335 // भावनामन्तरा चीर्णा क्रियादानादिकन्तथा। विज्ञेया निष्फलैवात्र भस्मराशाविवाहुतिः // 336 // सद्भावकृतकर्माणि फलं ददति चिन्तितम् / वृष्टीव समये जाता साधुसेवेव वा कृता // 337 // श्रीचक्रवर्ती भरतो निमग्नो मोहेन राज्ये ह्यभवत्पुरा वै। आदर्शशोभेक्षणभावतोऽथ ज्ञानं स लेभे शिवधामदायि // 338 // पूज्यते च यया देवो वीतरागो निरन्तरम् / .. पूजेयं सर्वथा ज्ञेया मनःशुद्धिविधायिनी // 339 // देवपूजाप्रभावेण नरो नृत्यति सम्पदा।। विद्यासौभाग्यधीराज्यलाभतुष्ट्या तथैव च // 340 // देहशुद्धिर्वचःशुद्धिः कार्यसिद्धिश्च पूजया। . जायते कोषवृद्धिश्च दुरितौघक्षयस्तथा // 341 // देवापचितिरक्तानां देवद्रव्योपवर्द्धिनाम् / देवकीर्तनमग्नानां न दारिद्रयादिसम्भवः // 342 // तेषां सद्मसु राजन्ते कमला: सुस्थिराः सदा। ज्ञानिनामिव देहेषु कान्तयः शान्तिदायकाः / / 343 // 239