________________ निन्द्यकार्यं महादम्भो मारणं हरणन्तथा।। खात्रदानञ्च भीत्यादौ दौष्कर्म्यं वनितादिषु // 251 // फलान्येतानि बोध्यानि चौर्यस्य चौरकर्मणाम् / रङ्कवद्भिक्षणं क्वापि भयं दैन्यश्च पीडनम् // 252 // निगडैर्बन्धनं सम्यक्-वधो दण्डः पुनः पुनः।। ध्वान्तागारप्रवेशश्च शूलिकाऽऽरोपणन्तथा . // 253 // . वाहिकत्वम्पारवश्यं वियोगः सन्ततेस्तथा। क्षुत्पिपासादिपीडात्वं पञ्चत्वं निरयस्तथा / // 254 // चौवें न कार्यं वसुभूतिवच्च संसारपाथोधिनिमज्जनाय / सौख्यस्य वाञ्छा यदि चेदिहास्ति पुण्यकुरुध्वन्त्विव रौहिणेयः 255 दरयन्ति च वै दारा आद्रियन्तेऽथवा तथा। परेण सह संयोगे परदारा निगद्यते // 256 // परवस्त्वपि न ग्राह्यं किमुत वनिता प्रिया। यदर्थं घोरसङ्ग्रामा अभवंश्च धरातले // 257 // परदारान्न लिप्सेच्च भूतिकामो नरोत्तमः। परदाराभिसङ्गेन के के नष्टा न भारते? // 258 // जिह्वाग्रे मिष्टता भाति हृदये च हलाहलः। / विश्वासं खलु कः कुर्यात् स्त्रियश्छद्मनिधेरिह // 259 // कम्पते हृदयं पूर्वं शैथिल्यमङ्गसन्धिषु / काष्ठाऽवलोकनं भूयो भयं भूरितमन्तथा / / 260 // . द्रव्यनाशः कीर्तिनाशश्चात्मनो वाच्यता तथा / पित्रोः कुलस्य जातेश्च ह्यपमानञ्जनान्तरे // 261 // कारागारमहापीडा धिक् लब्धिमरणन्तथा। उभयत्र महादुःखं परदाराभिगामिनः // 262 // 232