________________ ;-PSS. // 413 // // 414 // // 415 // // 416 // // 417 // // 418 // अथ कल्येऽथ मासान्ते, वर्षान्ते प्रलयेऽपि वा। कृतसत्कर्मणां मृत्योः, का शङ्काऽवश्यभाविनः ? मर्तव्यं वर्ततेऽवश्यं; कर्तव्यं कुरु सत्वरम् / धर्तव्यं धर शक्तः सन्, स्मर्तव्यं स्मर सुस्थितः रोगपात्रमिदं गात्रं, न स्थिरे धनयौवने / संयोगाश्च वियोगान्ताः, कर्तव्या सुकृते रतिः सर्वसाधारणे मृत्यौ, कः शरण्यः शरीरिणः / श्रीमद्धर्म विहायैकं, जन्ममृत्युजरापहम् कालेन भक्ष्यते सर्वं, न स केनाऽपि भक्ष्यते / अनादिनिधनत्वेन, बलिष्ठो विष्टपत्रये कवलीकुरुते कालः, त्रैलोक्यमखिलं सुखम् / अनाद्यनन्तरूपोऽयं, न केनाऽपि कवल्यते षट्खण्डक्षितिपा यक्षाः, रत्नानि निधयः स्त्रियः / सवैद्याश्च वशे येषां, विपन्नास्तेऽपि चक्रिण: येऽब्धिं चुलुकसात् मेरुं, दण्डसात् छत्रसान्महीम् / / कर्तुं शक्ताः सुधाहारास्ते म्रियन्तेऽमरा अपि यत्पुरः किङ्करायन्ते, सुरासुरनरेश्वराः / / तेऽपि तीर्थङ्करा विश्वप्रवरा न भुवि स्थिराः अहो ! उच्छ्वासनिःश्वास-करपत्रगतागतैः / विदार्यमाणं मोहान्धैर्निजमायुर्न वीक्ष्यते क्र्धते हीयते विद्या, वित्तं स्नेहो यशो भुवि / मणिमन्त्रौषधियोगैर्वृद्धिहानी तु नायुषः विनष्टनगरागार-कर्णालङ्करणादयः / . प्रायः संस्कारमर्हन्ते, संस्कारो नायुषः पुनः 83 // 419 // // 420 // // 421 // // 422 // // 423 // // 424 //