________________ पतिमार्यवधीत्कान्तं, नयनाली यशोधरम् / प्रदेशिनं सूर्यकान्ता, चुलणी चक्रिणं सुतम् // 207 / / श्वसुरं नुपूराभिज्ञाऽभयाराज्ञी सुदर्शनम् / चिक्षेप व्यसने चैवं, योषितोऽपि सदूषणाः . // 208 // तीद्रुमाः प्रयच्छन्ति, फलं छिन्दन्ति चातपम् / तेभ्योऽपि निम्नगा द्रुह्येत्, सस्नेहा क्वापि न स्त्रियः / // .209 / / क्षुरी-नारी-बहुकरी-श्रीखण्डी-खटिका-शुकी / प्राप्यन्ते घृष्टपृष्टां षट्, प्रायः परकरं गनाः // 210 // तन्नास्ति विश्वे यद्वस्तु, रक्तैः स्त्रीभ्यो न दीयते / आस्तामन्यः स्वदेहाध, पार्वत्यै शम्भुरप्यदात् // 211 // अत्यन्तमिलितः स्त्रीभिर्नरो नारीत्वमश्नुते / लब्धं क्षिप्रचटी म, शालिभिर्दालिसङ्गतैः // 212 // वरो गुणवरो धन्या, कन्या पक्षे द्वयेऽप्ययम् / संयोगः सर्वपुण्यैः स्यात्, पुनः पुण्यविवर्धकः // 213 // वपुर्वंशो वयो वित्तं, विद्या विधिर्विदग्धता।. विवेको विनयश्चेति, वरे वरगुणा अमी // 214 // विकलाङ्गो विलक्ष्मीको, विद्याहीनो विरूपवाक् / विरोधी व्यसनासक्तो, वधूवधकरो वरः // 215 // कुल्या कलावती कार्य-कल्पा कथितकारिणी / कलस्वरा कम्रकथा, कन्या कान्तकुलद्धये // 216 // कुलक्षणा कालमुखी, कलाहीना कलिप्रिया / कटुस्वरा कटुकथा, कन्या कान्तकुलान्तकृत् // 217 // यथा तडागीमहिष-श्वाक्रिकश्च यथा वृषः / . यथा निगडबद्धांहिः, परिणीतः पुमांस्तथा // 218 //