________________ // 195 // // 196 // // 197 // // 198 // // 199 // // 200 // कायोत्सर्गी चतुर्मास्यामायात् सङ्घनृपाज्ञया / मेरौ विष्णुकुमारर्षिः शिक्षितुं नमुचि न किम् ? माहेश्वरीपुरी नीत्वा, श्रावकान् सेवकानिव। दुभिक्षे रक्षयामास, वज्रस्वामी गुरुर्न किम् ? गोदानं सत्यवाग्दानात, सर्वेभ्यः सफलीकुरु / देहि सद्गुणपात्रेभ्यः, सुवर्णं विशदं यशः क्षमोक्ता रत्नगर्भा सा, कल्पतामक्षमावते / दीयते यत्नतो रत्न-त्रयी योग्याय रान्तिकैः नवश्रोतोमलक्लिनकायस्नाने किमात्मनः / मनः शुद्धयम्बुना स्नानं, कुर्वान्तरमलच्छिदे भैरवो रौद्रकर्माद्रिः, पातस्तस्मादधोगतौ / प्रोक्तो भैरवपात: स, निषेद्धं केन शक्यते ? वियोग-विभवाभाव-व्यलीक-व्याधि-विद्विषः / पञ्चाग्नयोऽमी दुःसह्याः, साध्याः कर्मच्छिदे सदा क्रोधमानमायालोभ-स्मराः पञ्चान्तराग्नयः। धर्मगुमान् भस्मयन्तः, साध्यतां श्रेयसे बुधैः पतिमृत्यौ-सुताभावे-नि:स्वने यौवने गता। तपोग्निना स्वदुष्कर्म-काष्ठभक्षणमाचरेत् नोतमाः पुरुषा एव, नाधमा एव योषितः / . उत्तमत्वं गुणैर्दोषैरधमत्वं द्वयोः समम् यतः-दमयन्ती नलोऽत्याक्षीत्, सीतां रामो वनेऽमुचत् / नारक्षि पाण्डवैः कृष्णा, सुतारापि हरीन्दुना रावणोऽन्यस्त्रियं जहे, खाण्डवं चार्जुनोऽदहत् / महान्तोऽपि नरा एवं, दोषिणोऽन्यस्य का कथा . // 201 // // 202 // // 203 // // 204 // // 205 // // 206 // 65