SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 47 // // 48 // उपेत्याऽरिन्दमाचार्यान्, ववन्दे मेदिनीपतिः / बिभ्राणः पुलकव्याजाद्, भक्तिमङ्कुरितामिव सूरिवर्योऽप्युपमुखं, विन्यस्तमुखवस्त्रिकः / धर्मलाभाशिषमदात्, सर्वकल्याणमातरम् नरेवरोऽपि विनयात्, तनुं सङ्कोच्य कूर्मवत् / अवग्रहभुवं मुक्त्वा, निषसाद कृताञ्जलिः शुश्राव देशनां तस्मादाचार्यादवनीपतिः / एकतानमनास्तीर्थकरादिव पुरन्दरः राजस्तद्भववैराग्य, धर्मदेशनया तया / व्यशिष्यताऽवदातत्वं, शरदेव हिमश्रुतेः // 49 // // 50 // // 51 // // 1 // // 2 // * // सूरेवैराग्यकारणम् // अहं हि गृहवासस्थः, पुरा दिग्जयहेतवे / हस्त्यश्व-रथ-पादातिचमूभिः सहितोऽचलम् मार्गान्तराले सततस्निग्धच्छायामनोरमम् / जगभ्रमणखिन्नाय, विश्रामौक इव श्रियः नृत्यन्तमिव कङ्केल्लिलोलपल्लवपाणिभिः / . हसन्तमिव विहसन्मल्लिकास्तबकोत्करैः रोमाञ्चितमिवोदश्चत्कदम्बकुसुमोच्चयैः / / वीक्ष्यमाणमिव स्मेरकेतकीकुसुमेक्षणैः / सन्तापिनस्तपनांशून्, दूरादापततोऽपि हि / साल-तालगुमभुजैनिषेधन्तमिवोच्छ्रितैः दत्तगुप्यद्गृहमिवाऽध्वगार्थं वटपादपैः / सज्जीकृतपाद्यमिव, सारणीभिः पदे पदे // 3 // // 4 // // 5 // . 221
SR No.004461
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages354
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy