________________ अर्द्धनिमग्ने बिम्बे भानोः सूत्रं भणन्ति गीतार्थाः / इति वचनप्रामाण्यांदैवसिकावश्यके कालः // 341 // अथवाऽप्येतन्निा -घात मुनयस्तथा प्रकुर्वीरन् / आवश्यके कृते सति यथा प्रदृश्येत तारकत्रितयम् // 342 // धर्मकथादिव्यग्रे गुरौ तु मुनयः स्थिता यथास्थानम् / / सूत्रार्थस्मरणपराश्चाऽऽपृच्छय गुरुं प्रतीक्षन्ते // 343 // आवश्यकं विदधते पूर्वमुखास्तेऽथवोत्तराभिमुखाः / श्रीवत्साकारस्थापनां समाश्रित्य तिष्ठन्तः // 344 // आचार्या इह पुरतो द्वौ पश्चात्तदनु च त्रयस्तस्मात् / द्वौ तत्पश्चादेको रचनेयं नवकगणमानात् // 345 // मुनियुगलकेन विधिना कालो व्याघातिकस्तथा ग्राह्यः / तस्मिन् यथा समासे सन्ध्याया अप्यपगमः स्यात् // 346 // कुर्वीत स्वाध्यायं मुनिवर्गो यावदादिम-प्रहरम् / . विश्रामणं च कुर्यात् सुबाहुमुनिरिव यतिजनस्य // 347 // कालिकसिद्धान्ताध्ययनवाचनागुणनगोचरः कालः / दिवसस्य निशश्च प्रथमपश्चिमौ द्वौ मतौ प्रहरौ // 348 // अङ्गान्येकादशकालिकं श्रुतं तत्त्ववेदिभिर्भणितम् / सर्वोऽपि दृष्टिवादः कालिकरूपं श्रुतं च स्यात् // 349 // प्रतिलिख्य वदनवसनं लघुवन्दनकेन रात्रिसंस्तरकम् / / सन्देश्यान्येन वदति "राई संथारए ठामि" // 350 // शक्रस्तवं भणित्वा कृतमिथ्यादुष्कृतो यथा ज्येष्ठम् / कृतसाकारानशनो निजितनिद्राप्रमादः स्यात् // 351 // यतिनो यतिनः प्रत्येकं कुड्यस्य च यतेश्च रचनायाम् / यतिनाञ्च पात्रकाणां हस्तो हस्तोऽन्तरे कार्यः // 352 // 155