________________ // 77 // // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // एतानि विना पट्टकमवग्रहानन्तकादिहरसंख्यम् / एकञ्च कमठकमिति व्रतिनीनां पञ्चविंशतिधा / यष्टिवियष्टिदण्डौ विदण्डको नालिका कटित्रञ्च / संस्तारकोत्तरपट-वित्याद्यौपग्रहिक उपधिः यष्टिनिजदेहमितिस्तया यवनिका निबध्यते वसतौ / अङ्गुलचतुष्टयेन न्यूना यष्टेवियष्टिः स्यात् क्वाप्यनाश्रयवलजं स्तेनादिकरक्षणाय घटते तु / ऋतुबद्धकानयोग्यो दण्ड: स्कन्धप्रमाणेन वर्षासु वृष्टिसमये कक्षामात्रो विदण्डको ग्राह्यः / स हि नीयते लघुत्वात् कल्पान्तरितो जलभयेन अङ्गुलचतुष्टयेना-धिकप्रमाणा स्वदेहतो नाली / नद्यादिजलोत्तारे तया तलं ज्ञायते पयसः पर्वैकमत्र भव्यं कलहाय द्वे धनाय च त्रीणि / . मरणाय चतुःपर्वा च पञ्चपर्वाऽध्वकुशलाय . रोगकृते षट्पर्वा मान्द्योच्छेदाय सप्तपर्वा सा / . अष्टचतुरङ्गुलात्वन्तमूलयोर्मत्तगजजयिनी (?) सम्पच्छिदेऽष्टपर्वा यशांसि यष्टिर्ददाति नवपर्वा / ऋद्धिकरी दशपर्वा प्रवृद्धपर्वा 'विशेषेण कुटिला कीटकजग्धा दग्धा शुषिरा विचित्रवर्णा या / सा यष्टिरूशुष्का च वर्जनीया प्रयत्नेन घनवर्द्धमानपर्वा वर्णे स्निग्धा तथैकवर्णा या / सा मसृणवृत्तपर्वा यष्टिर्योग्या यतिजनस्य हस्तप्रमितिकटित्रं चतुरस्रं तत्पुनः प्रदीपनके / वृत्त्याद्युपरि क्षिप्त्वा सुखेन निष्काम्यते स्थानात् 133 // 83 // // 84 // 85 // // 86 // // 87 // // 88 //