________________ // 149 // // 150 // // 151 // // 152 // // 153 // शुक्रशोणितसम्भूते, सप्तधातुमलाश्रये / त्वङ्मात्राऽऽवृते पुंसां, काये का रमणीयता ? रमणीया रमणी या, निगद्यते काममोहितमनोभिः / तस्या अपि निस्सारं, शरीरकं पूतिमलगन्धि संसारासारता येषा - मेषा नो मनसि स्थिता / भ्रमन्ति ते सदा त्रस्ता, भवारण्ये मृगा यथा जनयित्री जनी यत्र, जनी च जनिका जायते / कुबेरदत्तया दत्तो, दृष्टान्तोऽत्र जिनागमे संसारासारतामेनां, विभाव्य निजमानसे / ते धन्या येऽत्र संसारे, कुर्वते न रति जनाः अज्ञातभववरस्याः, कील्यन्ते शोकशङ्कुना / अतस्तदपनोदार्थं, किञ्चिदेवोपदिश्यते स्वबन्धुनाशे जीवानां, हृदयं शोकशङ्कुना / कोल्यते कुशलस्यापि, निविवेकस्य किं पुनः ? तथापि निष्प्रतीकारे, सर्वसाधारणे सदा / किमर्थं क्रियते शोको, मरणे समुपागते सममेव प्रवृत्तानां, गन्तुमेकत्र पत्तने / . यद्येकः पुरतो याति, का तत्र प्रतिवेदना ? शोकोऽपि युज्यते कर्तुं, स्वस्य वा तस्य वा गुणम् / यदि कुर्यात्कृतः किंचि-नो चेदेष निरर्थकः / आयातः स कुतोऽपीह, स्थित्वाऽहानि कियन्ति च / न ज्ञायते गतः क्वापि, का तत्र प्रतिबन्धधीः ? यथैकत्र द्रुमे रात्रा - वुषित्वा पक्षिणः प्रगे। दिशो दिशं प्रयान्त्येव - मेकगेहेऽपि जन्तवः // 154 // // 155 // // 156 // // 157 // // 158 // // 159 // .107