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________________ उवाचार्जवसामन्तो मनांसीष्टशरीरिणाम् / . प्रभूयेऽहं समीकर्तुं विषमान्यपि लीलया // 7124 // सरलालापविश्वासविश्ववाल्लभ्यसन्निभाः / अन्तरङ्गा भटा नैके जीवन्ति मयि जीवति // 7/125 // प्रकाशयन्तः सद्भावं पृच्छतो भूपतेः पुरः / / भटाः क्षुल्लकुमाराद्या मम बाह्यास्तु सेवकाः ' // 7126 // अनिवृत्तिगुणस्थाने दीक्षितस्याजिदीक्षया / ममोत्थानवतो हन्त दम्भः किं भविता पुरः // 7/127 // संतोषः स्माह गम्भीरां गुर्वीमच्छिन्नसंततिम् / स्वामिन् ! शोषयितुं शक्तः सोऽहं काङ्क्षातरङ्गिणीम्।। 7 / 128 // समाधिधृतिमाधुर्यं धुर्यान्तरपरिच्छदम् / मां भजन्ति भटा भक्त्यातिमुक्तकपिलादयः // 7129 // नवमे दशमे तन्वन् गुणयोविग्रहाग्रहम् / अपि लोभमहं क्षोभमानेष्येऽनीक्षितक्षितिम् . // 7130 // उत्साहः स्माह सेनानीरहं मानी मनस्विषु / / सर्वेषामपि शूराणामहं सिद्धिनिबन्धनम् // 7 / 131 // अनिर्वेदाशुकारित्वप्रायान्तरपरिच्छदम् / इन्द्रानुजमहागिर्यादयो भृत्या भजन्ति माम् . // 7132 // सर्वेषु सद्गुणस्थानेष्वलमुत्थानशालिना / झञ्झयेव जरद्धेनुर्धूतैवारिचमूर्मया // 7 / 133 // प्रोचे बोधस्तलारक्षोऽपरक्षोभकरं वचः / सर्वानहं पटूकर्तुं बन्धूनीशे स्वतेजसा || 74134 // सूक्तनिर्णयसच्छास्त्रप्रायान्तरपरिच्छदम् / .. मां सेवन्ते धर्मरुचिशिववज्रार्यरक्षिताः // 7135 // 280
SR No.004459
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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