________________ // 7112 / / // 7/113 // // 7 / 114 // // 7115 // // 7116 // // 7117 // अप्रमत्ताद्गुणस्थानात्कृतोत्थानौ शनैः शनैः / रागद्वेषौ कथाशेषौ विधास्यावो वधोचितौ एवं पुत्रैस्त्रिभिर्व्यक्तमुक्ते भुजबले निजे / सम्यग्दृष्टिरथामात्योऽवदत्स वदतां वरः स्वामिन्ननादिसंसारस्रोतःपूरानुपातिनः / जनानुध्धृत्य शक्त्याहमचिरात्प्रापये तटम् देवे धर्मे गुरौ तत्त्वे दिग्मूढानां शरीरिणाम् / मीमांसाञ्जनयोगेन व्यपोहेऽहं मतिभ्रमम् आस्तिक्यस्थैर्यनैपुण्यमुख्यान्तरपरिच्छदम् / मां सेवन्तेऽनिशं भूपाः सत्यकिश्रेणिकादयः मयि तुर्यं गुणस्थानमासाद्योत्थानशालिनि / मोहामात्यस्य मिथ्यादृग्नाम्नो भावी ध्रुवं क्षयः शमोऽवददहं दाहं देहिनां हर्तुमीश्वरः। . मां विना दाहनालीढमिव संतप्यते जगत् . स्वास्थ्यशैत्यजगन्मैत्र्यमुख्यान्तरपरिच्छदे / सागरेन्दुनागदत्तादयो वीराः स्थिता मयि नवमेऽहं गुणस्थानेऽनवमेऽदभ्रसंभ्रमः / क्रोधयोधमसद्रोधः प्रापयिष्ये यमालयम् / अथोचे मार्दवेनोच्चैः स्वौजषा देव ! सत्वरम् / स्तम्भीभूतं जगन्मानाद्वेववन्नामयाम्यहम् प्रश्नप्रणामसंमानप्रायान्तरपरिच्छदः / सौनन्देयेन्द्रभूत्याद्या भटा मां बहु मन्वते अनिवृत्तिगुणस्थाने कृतोत्थाने रयान्मयि / अहङ्कारो न हुङ्कारमपि कर्तुं क्षमिष्यते . . 270 // 7118 // // 7119 // // 7120 // // 7/121 // // 7122 // // 7123 //