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________________ // 675 // // 676 // // 677 // // 678 // // 679 // // 680 // हत्वा संहननान्यन्यान्यपि तेनैव हेतुना / निःसारमबलं चेति तदन्त्यं व्यग्रहीन सः यन्मुहूर्तेन पूर्वाब्धिपारप्रापणतत्परम् / तेनास्तं तन्महाप्राणध्यानमानञ्च पञ्चताम् एवं प्रतिदिनं स्फूर्जदधिकाधिकतेजसम् / कलि प्रत्यन्यदा प्राप संप्रतिक्ष्मापतिः क्रुधम् स्थाने स्थानेऽमुना जैनागारप्राकारकारिणा / समुत्तस्थे युधे सङ्घचतुरङ्गचमूजुषा अनार्येष्वपि देशेषु प्रवाहतशासनम् / स कलिं विकलीचक्रे सामदानाद्युपायवित् एवमभ्युदिते तस्मिन्नकस्मादुद्भटे भटे / कालवेदी किल क्वापि कलि दर्शयद् बलम् काले संप्रतिभूपालः कालेन कवलीकृतः। . किं ब्रूमहे विधेर्वाम्यं यच्छूरा न चिरायुषः . पुनः केऽपि महीपालाः कलिमोहवशंवदाः / / सद्य उल्लाघयाञ्चक्रुरुपचारैर्नवैर्नवैः ततो वितस्तरे लक्षशाखं पाखण्डमण्डलम् / प्रमादः प्रापदुन्मादं मिथ्यात्वं मानमानशे . स दुर्भिक्षादियाष्टीकान् प्रेष्य निष्ठुरकर्मणः। प्रवर्तकं जिनाज्ञाया आगमं खण्डशो व्यधात् अनुयोगान् पृथक्कृत्य चतुरः संगतानपि / व्यपोहितुं प्रवृत्तोऽसौ नैकोपाया हि तादृशाः उद्योतनाय नायान्ति तीर्थस्यात्र सुरासुराः / जागर्ति महिमा नोग्रतपसामपि तद्बलात् 253 // 681 // // 682 // // 683 // // 684 // // 685 // // 686 //
SR No.004459
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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