________________ // 639 / / // 6 // 40 // // 641 // . // 642 // // 6 / 43 // // 6 // 44 // उपर्युपर्यनङ्गोक्तिताम्बूलैरुन्मदिष्णवः / हल्लीसकेषु गायन्त्यो गुणाली पुष्पधन्वनः भूषणक्व णितैर्हस्ततालैः सोत्प्रासभाषणैः / स्त्रीराज्यमिव तन्वाना व्यधुर्वर्धापनोत्सवम् तदाखिले राजकुले हर्षकोलाहलाकुले / विमृशन्नायति मोहमहीन्द्रो दध्यिवानिति उत्सवानच्छवामाक्ष्यो वितन्वन्तु यथारुचि / विवेको यद्गतो जीवनेतन्मां व्ययते पुनः बाला इवाबला बुद्धिविकला नायति विदुः / अल्पे पुंस्स्वपि ते येषां मतिरायतिमञ्चति आर्यैः प्रशस्यते कार्यं यत्परीणामसुन्दरम् / क्वाथः कटुरसोऽप्युच्चै रुजां हर्तेति वल्लभः दुःखावहं विपाके यत्कार्यं कार्यं न तत् बुधैः / अप्यादौ स्वादु किम्पाकमन्ते मृत्युदमुझ्यते राज्यं यन्निःसपत्नं स्यात्तत्र भान्ति महोत्सवाः / / अन्यथोत्सवनिर्माणं स्वप्नमोदकसन्निभम् नंष्ट्वा गतो विवेको यत्तच्छाठ्यान्न पुनर्भयात् / अपसृत्य ददत्फालां सिंहः किं हन्ति न द्विपान् असावुपजिनं गत्वा विवोढा संयमश्रियम् / ततो जातबलो वंशमामूलं नः खनिष्यति सहसा सहनः शूरो नश्यन् भवति दुःसहः / अकस्मादृष्टानष्टो हि दुव्रणो मृत्युकारणम् इत्यायतिविमर्शोत्थचिन्तयाचान्तचेतसम् / दौवारिकः समागत्य नरनाथं व्यजिज्ञपत् // 6 / 45 // // 646 // // 6 / 47 // // 648 // // 649 // // 650 // 250