________________ // 627 // // 6 // 28 // // 629 // // 6 // 30 // // 631 // // 6 // 32 // साथ स्वं सकलस्त्रीषु व्यञ्जितुं वीरमातरम् / कृष्णाविनीलकापोतीलेश्यादासीरवोचत / हंहो हला जगन्त्यत्र जेतुं यातु तनूरुहे / कदाशागोत्रदेवी प्रागभ्याहं व्यजिज्ञपम् वर्धापनं विधास्येऽहं भगवत्यग्रतस्तव / द्रक्ष्यामि यदि जीवन्ति तनयं जयवादिनम् अभूत्फलेग्रहिः सोऽद्य मनोरथतरुर्मम / उत्सवार्थमथामन्त्र्या मन्त्र्यादिमहिलागणाः प्राक् प्रिया युवराजस्य भ्रान्तिराहूयतां ततः / तत्त्वरुचिरमात्यस्यावज्ञा सैन्याधिपस्य च आरक्षस्य प्रिया दुर्वाक् साधुनिन्दा पुरोधसः / श्रेष्टिनश्च त्वरा कोशाधीश्वरस्य कदर्यता बालता बालमित्रस्यानवस्था शौल्किकस्य च / सामन्तानां तत्तदीहाः शय्यापालस्य जिह्मता देशपालप्रिया ईर्ष्याहक्रियावञ्चनाधयः / वण्ठानां लालसा च्छत्रभृतो भार्या कुभावना गुप्तिपानामतृष्णिश्च लोलता सुखशीलता / सूदानां दुष्टघटना रुचः करणचारिणाम् अथ ताभिस्तदादेशादानीते वनितागणे / . मौढ्यमैरेयमुन्मादप्रदं सानाययद् द्रुतम् सपत्न्यः स्नेहलत्वेन तदा तत्राययुः स्मयम् / आययुश्च रतिप्रीत्यसूयातिप्रमुखाः स्नुषाः ताः समस्ताः समभ्यर्च्य सद्भक्त्या. गोत्रदेवताम् / / आकण्ठपीतमैरेयरसचूर्णितलोचनाः . 240 // 6 / 33 // // 6 // 34 // // 6 / 35 // // 636 // // 6 // 37 // // 638 //