________________ प्रियबन्धुवर्गजननीजनकचरणभक्त ! सेवकसफल ! / श्रीमोहराजनन्दन ! मदन ! जीव जीव चिरमतुलबल ! // 6 / 15 // एवं च्छन्दोऽन्तरैः स्तूयमानो बन्दिकदम्बकैः / कामस्तातं पुरस्कृत्य मौलमावासमासदत् / 6 / 16 // क्रोडीकृत्य कुमारेन्द्रं नृपो हंसमिवोत्पलः / स्वमासनमलञ्चक्रे सत्प्रभाम्बुसरोवरम् ' // 617 // कथं दिग्विजयं वत्स ! व्यधास्त्वमिति भूभुजा / पृष्टो हिया स्ववृत्तोक्तौ भेजे मौनमनन्यनः // 6 // 18 // बन्दी मन्दीकृताम्भोधिकल्लोलः स्वीयलोलया / जगौ विवेकनाशान्तं तस्य वृत्तं यथातथम् // 6 // 19 // प्रमदोदञ्चिरोमाञ्चसञ्चयोऽथ महीपतिः / स्वाजिरेऽकारयत्तूर्यत्रयेणातुच्छमुत्सवम्' // 6 // 20 // ततः पितुर्निदेशेन स चिराद्विरहातुराम् / ववन्दे मातरं पुत्रदिदृक्षातृषितेक्षणाम् // 621 // सापि प्रीतिभरोत्फुल्लप्रमोदश्रवदश्रुभिः / . स्नपयन्ति तमालिङ्ग्यावददाशी:पुरस्सरम् // 6 / 22 // त्वं जात ! जायायुग्मेनावियुक्तो विजयी भव / तैस्तैः स्वविक्रमैर्वत्स ! मनो मातुश्चमत्कुरु // 6 // 23 // गुरूणां कुर्वते प्राप्य प्राभवं ये पराभवम् / त्वं तेषां विपरीतोऽसि सृष्टिवल्लीव वीरुधाम् // 6 / 24 // पौष्पैरस्त्रैस्त्रिभुवनक्षोभसोत्साहबाहुना / स्त्रीषु सत्त्ववतां धुर्य ! धुर्यहं स्थापिता त्वया - // 6 / 25 // बलवत्कर्मजातत्वात् प्रागहं वीरनन्दिनी / . . मोहेन वीरपत्नीति त्वया वीरप्रसूः कृता // 6 / 26 // 248