________________ तौ प्राक् हृदा ततो वाचा ततोऽङ्गेन तथा युतौ / यथा भेदस्तयो भूनद्यब्धिजलयोरिव // 6 // 3 // अथ नागरिकव्रातारब्धातुच्छमहोत्सवम् / प्रतिमन्दिरमुत्तब्धभवभ्रान्तिपताकिकम् // 6 // 4 // वञ्चनावचनोदञ्चन्मञ्चसञ्चयसंकुलम् / सर्वतोऽश्लीलवाग्वाद्यनादजागरनागरम् // 65 // विचित्रविक्रियावारवधूविहितनर्त्तनम् / हावभावस्तम्भबद्धगृद्धिचन्दनमालिकम् // 66 // मोट्टायितादिसन्मुक्तास्वस्तिकाङ्कितपद्धति / अगाराग्रस्थाप्यमानकौशीलाकलशावलि // 67 // लास्यहास्यरसोत्तालनटवैहासिकव्रजम् / आश्रवाख्यगवाक्षस्थनरनारीकदम्बकम् . ||68 // हर्षाकुलमिलल्लोललोककोलाहलाकुलम् / . स विवेश पुरं पौरैर्वीक्ष्यमाणः सविस्मयम् . त्वं कुसुमशरैर्मन्मथ ! जगन्ति जितवान् यथा तथा कोऽन्यः / तदसि खलु वीरवृत्त्या भुवनभयानामुपरिभूतः // 10 // परिभूतभूतपतिगणविलास ! कृतब्रह्मवेदवाणीनिरास ! / उपहसितचतुर्भुजचापचक्र ! विधुरीकृतकरधृतकुलिशशक ! 6 / 11 // तनुतन्तुतुलितजलनाथपाश ! मन्दीकृतसूरकरप्रकाश / भवहीलितचन्द्रकलाकलाप ! मोघीकृतमहऋषिसबलशाप !6 / 12 // अवधीरितविषधरविषमलाल ! परिवर्तितदुर्द्धरसिंहफाल ! / अवगणितगरुडगुरुपक्षवात ! परिशटितविकटभटशस्त्रघात ! 613 // कृतशौचवादिशौचावसान ! खण्डितसमग्रपाखण्डिमान ! / ' योगीशयोगभञ्जनसमर्थ ! जय जय तृतीय ! मन्मथ ! पुमर्थ! 6 / 14 // // 69 // 240