________________ अनाथमथ तत्प्राप नगरं मकरध्वजः / अविवेष्टदविक्षच्च व्यलुलुण्टदलुप्त च // 5 / 377 // उपार्हद्गमने भूत्वाऽलसास्तत्रैव ये स्थिताः / बन्दीचकार तान् जीवन्मृतप्रायान् जडानसौ // 5 / 378 // तैर्वराकैधृतैरन्तरुत्कर्षमभजन्नसौ / बभार च बहिर्वृत्त्या पुमर्थेषु पुरोगताम् // 5/379 // ऊचे च ही विवेकेन मम नाम्नैव नश्यता / अद्य क्षत्रकुलाचारकथाकन्था श्लथीकृता // 5 / 380 // मन्त्रिणस्तनयो ह्येष राज्ञः सूनुरहं पुनः / मत्तोऽयमनशद्युक्तं शौर्य वंश्यान्विना कुतः // 5 // 381 // पूर्व तातभियानेन यदभ्यस्तं पलायनम् / सुशिक्षितमिवाद्यापि सुधियस्तन विस्मृतम् // 5 // 382 // एवं पलायितेऽमुष्मिन् महौजसि ममाथ कः। .. दोर्दण्डरणकण्डूतेरगदङ्कारतां गमी . // 5 / 383 // यद्वा जिनस्य भक्तोऽयं निर्मदस्यास्तु निर्मदः / / युक्तं हि प्रकृतिर्नेतुः संक्रामति सुसेवके // 5 / 384 // समीपमेतस्य हि नेतुरेताः सिंहादयोऽप्यल्पमदा भवन्ति / संसर्गतः शीतजलस्य वढेराय तिग्मत्वमुपैति शान्तिम्॥ 5 / 385 // विषमात्र इति ख्यातिः कृता कविभिरेव मे। अन्यथा क्व स्फुट साभूदुन्दिरै वा पुरन्दरे // 5 / 386 // जानेऽहंतो गतोऽङ्ग्री स शरणं मय्युपस्थिते / बत्राप्यहेरिव बिलस्थाखुर्मे नैष दुर्ग्रहः // 5 / 387 // परं पुरं प्रवचनं गन्तुं मे नादिशत्पिता / / जितं जगत्त्रयं हंहो निवर्तध्वं चमूचराः // 5 / 388 // 245